लोगों की राय

धर्म एवं दर्शन >> अमृत द्वार

अमृत द्वार

ओशो

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :266
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9546
आईएसबीएन :9781613014509

Like this Hindi book 10 पाठकों को प्रिय

353 पाठक हैं

ओशो की प्रेरणात्मक कहानियाँ


शून्यता

एक बहुत अच्छा प्रश्न है। पूछा है, श्रद्धा के बिना शास्त्र का अध्ययन नहीं, अध्ययन के बिना ज्ञान नहीं। और ज्ञान के बिना आत्मा का अनुभव नहीं होता है।

श्रद्धा के बिना शास्त्र का अध्ययन क्यों नहीं होगा? हमारी धारणा ऐसी है कि या तो हम श्रद्धा करेंगे या अश्रद्धा करेंगे। हमारी धारणा ऐसी है कि या तो हम किसी को प्रेम करेंगे या घृणा करेंगे। तटस्थ हम हो ही नहीं सकते। जो श्रद्धा से शास्त्र का अध्ययन करेगा वह भी गलत, जो अश्रद्धा से शास्त्र का अध्ययन करेगा वह भी गलत है। शास्त्र का ध्यान तटस्थ होकर करना होगा। तटस्थ होकर ही कोई अध्ययन हो सकता है। श्रद्धा का अर्थ है आप पक्ष में पहले से मानकर बैठ गए हैं, पक्षपात से भरे हैं। अश्रद्धा का अर्थ है आप पहले से ही विपरीत मानकर बैठ गए। आप पक्षपात से भरे हैं। पक्षपातपूर्ण चित्त अध्ययन क्या करेगा? पक्षपातपूर्ण चित्त ने तो पहले से पक्ष तय कर लिया। वह शास्त्र में अपने पक्ष के समर्थन में दलीलें खोज लेगा और कुछ नहीं करेगा। पक्षपात शून्य होकर ही कोई अध्ययन कर सकता है। इसलिए मुझे श्रद्धा भी व्यर्थ मालूम होती है, अश्रद्धा भी व्यर्थ। असल में श्रद्धा अश्रद्धा दोनों ही अश्रद्धाए हैं।

एक आदमी ईश्वर पर श्रद्धा करता है, एक आदमी ईश्वर पर अश्रद्धा करता है। असल में अगर हम गौर से देखें तो उसमें एक ईश्वर के होने पर श्रद्धा करता है, एक ईश्वर के न होने पर श्रद्धा करता है वे दोनों ही श्रद्धाएं हैं। अश्रद्धा भी श्रद्धा है, विपरीत श्रद्धा है। इसलिए न तो श्रद्धा और न अश्रद्धा। पक्षपात शून्य होकर ही कोई सम्यक अध्ययन कर सकता है। हमारे इस जगत में वैसा सम्यक अध्ययन बहुत कम लोग करते हैं। परिणाम में भी कुछ उपलब्ध नहीं होता।

दूसरी बात उन्होंने कही, शास्त्र के अध्ययन के बिना ज्ञान नहीं। जिन्होंने भी पूछा है, वे शायद पांडित्य को ज्ञान समझ रहे हैं। शास्त्र के अध्ययन से पांडित्य उपलब्ध होगा, ज्ञान उपलब्ध नहीं होगा। ज्ञान उपलब्ध नहीं करना है, ज्ञान तो हमारा स्वरूप है। शास्त्र से स्वरूप का कैसे पता चलेगा? और अगर शास्त्र के स्वरूप का पता चल जाता तो शास्त्र अध्ययन करवा देना बहुत कठिन बात नहीं है, आत्मज्ञान बहुत आसान हो जाता। दुनिया में ऐसे लोग हुए जिन्होंने कोई शास्त्र नहीं पढ़े और आत्मज्ञान को उपलब्ध हुए जिनमें रामकृष्ण थे या ईसा थे। ये कुछ पढ़े लिखे लोग ही थे लेकिन इन्हें ज्ञान उत्पन्न हुआ। और दुनिया में ऐसे पढ़े लिखे लोगों की भीड़ है जिनका चित्त पूरा शास्त्र से भरा हुआ है और उन्हें आत्मज्ञान का कोई पता भी नहीं है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book