धर्म एवं दर्शन >> अमृत द्वार अमृत द्वारओशो
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ओशो की प्रेरणात्मक कहानियाँ
प्रश्न-- निर्विचार कितनी देर तक रहा जाए, क्या चौबीस घंटे तक रहा जाए?
उत्तर-- नहीं, चौबीस घंटे की बात नहीं है। अगर दस मिनिट भी परिपूर्ण निर्विचार में जा सकते हैं आप तो चौबीस घंटे धीरे-धीरे आप पाएंगे सब काम करते हुए--पड़े रहने की कोई जरूरत नहीं है--सब काम करते हुए। बात करते हुए, बोलते हुए, भीतर एक शून्य स्थापित बना रहेगा। एक बारगी थोड़ा सा समय तोड़कर चौबीस घंटे में आधा घंटा पंद्रह मिनट। उस पंद्रह मिनट में प्राथमिक रूप से क्रियाएं छोड़कर शून्य में जाना पड़ता है, पहले पहले, और जब एक दफा शून्य का अनुभव हो गया तब तो क्रियाओं के बीच भी शून्य में आ जा सकता है। चौबीस घंटे पड़ा नहीं रहना है, आधा घंटा जरूर पड़ा रहना है शुरुआत में। वह इसलिए कि काम में अगर हम बहुत व्यस्त हैं तो विचार को छोड़ना कठिन होगा शुरू में। विचार छोड़ना ही कठिन है। फिर काम में और व्यस्त थे और काम के कारण ही हममें विचार चलते हैं। तो छोड़ना कठिन होता है।
इसलिए शुरुआत में आधा घंटा निष्क्रिय ध्यान करना है, कोई क्रिया नहीं कर रहे हैं हम, चुपचाप पड़े हुए हैं, सिर्फ विचार को शून्य का भाव कर रहे हैं, सिर्फ विचार को शून्य में ले जाने का भाव कर रहे हैं। जब आधा घंटा निष्क्रिय ध्यान आ जाए, निष्क्रिय शून्यता आ जाए फिर सक्रिय ध्यान करना चाहिए। फिर क्रिया कर रहे हैं और साथ में चित्त शून्य कर कहे हैं, इसका उपाय भी कर रहे हैं। चल रहे हैं साथ-साथ-- चल भी रहे हैं और चित्त शून्य रहे, इसका भी भाव कर रहे हैं। खाना खा रहे हैं, खाना भी खा रहे हैं और चित्त शून्य में है, इसका भी भाव कर रहे हैं। फिर धीरे-धीरे वह जो निष्क्रियता हमें उपलब्ध हुआ उसका उपयोग सक्रियता में करना होता है। और जब वह सक्रिय रूप से भी पूरा हो जाए तो जानना चाहिए वह स्थित हो गया है। जब वह चौबीस घंटे सतत बना रहे, उठते बैठते, सोते जागते स्थिति बनी रहे तब जानना चाहिए वह सक्रिय ध्यान उपलब्ध हो गया। अगर सक्रिय ध्यान उपलब्ध हो जाए तो जीवन में अदभुत आनंद का अनुभव होगा।
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