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अंतिम संदेश

खलील जिब्रान

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :74
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9549
आईएसबीएन :9781613012161

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विचार प्रधान कहानियों के द्वारा मानवता के संदेश

(11)


और सप्ताह के पहले दिन, जबकि मन्दिरों के घण्टों की आवाज उनके कानों तक पहुंची, एक ने कहा, "प्रभो, हम इधर-उधर ईश्वर के विषय में अनेक बातें सुनते हैं। आप ईश्वर के विषय में क्या कहते हैं, और वास्तव में ईश्वर है क्या?"

और वह उनके सम्मुख एक युवा वृक्ष की भांति खडा़ हो गया, तूफान औऱ आंधी से निडर, और उसने यह कहकर उत्तर दिया, "मेरे साथियो और मुरब्बियो! एक ऐसे हृदय की कल्पना करो, जो कि तुम्हारे समस्त रहस्यों को समाये हुए है, एक ऐसा प्रेम जिसने तुम्हारे सम्पूर्ण प्रेम को लांघ रखा है; एक ऐसी आत्मा, जिसमें तुम्हारी समस्त आवाजें बसेरा हैं; एक ऐसी खामोशी, जोकि तुम्हारी समस्त खामोशियों से गहरी और अनन्त है।”

"अपनी स्वयं की सम्पूर्णता में ग्रहण करने के लिए एक ऐसी सुन्दरता खोजो, जोकि समस्त वस्तुओं की सुन्दरता से अधिक मोहक है; एक ऐसा गीत, जोकि समुद्र तथा वन के गीतों से अधिक विस्तीर्ण है; एक ऐसी भव्यता, जोकि एक ऐसे सिंहासन पर विराजती है, जिसके सम्मुख मृग-जड़ित बाल-नक्षत्र भी एक चरणपीठ है; और जो एक ऐसा राजदण्ड पक़डे़ हुए है, जिसमें टके हुए कृतिका-नक्षत्र* (*सात सुन्दर वस्तुओं का समूह) ओस की बूंदों की जगमगाहट के अतिरिक्त औऱ कुछ भी नहीं जान पड़ते।

"तुमने अभी तक केवल भोजन, आश्रय, कपडा़ और लकडी़ की ही चाह की है। अब उसे पाने का प्रयास करो, जोकि न तो तुम्हारे तीरों के लिए निशाना है और न पत्थरों की एक गुफा है, जोकि तत्वों द्वारा तुम्हारी रक्षा करेगी।”

"और यदि मेरे शब्द एक पत्थर और पहेली ही हैं, तब उसे पाओ, उससे कम नहीं, जिससे कि तुम्हारे हृदय टूट जाय, और जिससे कि तुम्हारे प्रश्न तुम्हें उस सर्वोच्च ज्ञान और प्रेम तक ले जायं, जिसे मनुष्य परमात्मा कहते हैं।"

और वह खामोश हो गया, दूसरे सब भी, और वे अपने हृदय में व्याकुल हो उठे। अलमुस्तफा उनके प्यार से द्रवित हो उठा और उसने उन्हें कोमल दृष्टि से निहारा तथा कहा, "आओ, अब हमें पिता परमेश्वर के विषय में और अधिक बातें नहीं करनी चाहिए। हमें देवताओं, तुम्हारे पडो़सियों, तु्म्हारे भाइयों तथा उन तत्त्वों के विषय में बातें करनी चाहिए, जोकि तुम्हारे घरों और खेतों में घूमते हैं।”

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