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अंतिम संदेश

खलील जिब्रान

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :74
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9549
आईएसबीएन :9781613012161

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विचार प्रधान कहानियों के द्वारा मानवता के संदेश

महाकवि खलील जिब्रान :  परिचय

कवि, ज्ञानी और चित्रकार खलील जिब्रान का जन्म सन् 1883 में सीरिया देश के माउण्ट लेबनान प्रान्त के बशीरी नामक नगर में हुआ था। लेबनान वही प्रान्त है, जहां यहूदियों के अनेक पैगम्बर पैदा हो चुके हैं। आज संसार में कवि जिब्रान ‘लेबनान का अमरदूत’ के नाम से विख्यात हैं। बारह वर्ष की आयु में ही उनके पिता उन्हें लेकर यूरोप की यात्रा पर निकल पडे़ थे। करीब दो वर्ष बाद वापस सीरिया पहुंचे और कवि को बेरुत नगर के मदरसत-अल हिकमत नामक प्रसिद्ध विद्यालय में दाखिल करा दिया। सन् 1903 में वे पुनः अमरीका गये और पांच वर्ष वहां रहकर फ्रांस पहुंचे। पेरिस में जिब्रान ने चित्र-कला का अध्ययन किया। 1912 में वे फिर अमरीका लौट गये और मरणपर्यन्त न्यूयार्क में ही रहे। सीरिया में रहकर उन्होंने अरबी भाषा में अनेक पुस्तकें लिखीं और वहां उनकी पुस्तकों का बहुत आदर हुआ। सन् 1918 लगभग उन्होंने अंग्रेजी में भी लिखना आरम्भ किया। तभी से उनकी अनोखे ढंग की लेखन-शैली और अपूर्व गहन विचारों की ख्याति न केवल अरबी अथवा अंग्रेजी भाषा-भाषी जनता में अपितु अनुवाद द्वारा सारे यूरोप तथा एशिया में फैल गयी। विश्व की तीस से अधिक प्रमुख भाषाओं में उनकी पुस्तकों के अनुवाद हुए और वे बीसवीं सदी के दांते कहे जाने लगे। जिब्रान की समस्त पुस्तकें उनके स्वयं बनाये हुए चित्रों से विभूषित हैं। इन चित्रों का प्रदर्शन संसार के सभी देशों के मुख्य नगरों में चुका है। उनकी तुलना अमरीका के महान कलाकार अगस्त रोडिन और विलियम ब्लैक से की जाती है। एक बार स्वयं अगस्त रोडिन ने कवि जिब्रान से अपना चित्र बनवाने की इच्छा प्रकट की थी और तभी से खलील जिब्रान की गणना अद्वितीय लेखक के साथ-साथ महान चित्रकारों में होने लगी। उन्होंने अंग्रेजी तथा अरबी में अनेक पुस्तकें लिखी है। उनमें से कुछ के नाम इस प्रकार हैं -

दि मैडमैन -1918  

स्प्रिट्स रिबैलियस ट्वेंटी पिक्चर्स - 1919

जीसस दि सन् ऑव मैन - 1928

दि फोररनर - 1920

दि अर्थ गॉड्स - 1931

दि प्रॉफेट - 1923  

दि गार्डन ऑव दि प्रॉफेट - 1933

सीक्रेट्स ऑव दि हार्ट

टीयर्स एण्ड लाफ्टर  

कवि जिब्रान अब संसार में नहीं है। 10 अप्रैल 1931 ई0 को 48 वर्ष की अवस्था में उनका देहान्त हो गया, किन्तु उनकी रचनाएं संसार में सदैव अमर रहेंगी। उनके विचार शान्ति, मनुष्यता और विश्वबन्धुत्व का संदेश सदैव सुनाते रहेंगे। 

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