लोगों की राय

व्यवहारिक मार्गदर्शिका >> अंतिम संदेश

अंतिम संदेश

खलील जिब्रान

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :74
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9549
आईएसबीएन :9781613012161

Like this Hindi book 6 पाठकों को प्रिय

9 पाठक हैं

विचार प्रधान कहानियों के द्वारा मानवता के संदेश

और रात्रि गहरी होती गई। रात्रि के साथ अलमुस्तफा भी अन्धकारमय होता गया, औऱ उसकी आत्मा थी, मानो एक बिन बरसा बादल तथा वह जोर से बोलाः -

"भारी है मेरी आत्मा अपने स्वयं के पके हुए फल से;
भारी है मेरी आत्मा अपने स्वमं के फलों से।
कौन अब आयेगा खायेगा और तृप्त होगा?
मेरी आत्मा लबालब भरी है मेरी मदिरा से;
कौन अब ढालेगा और पियेगा और ठण्डा होगा रेगिस्तान की गर्मी से? ”

"काश मैं एक वृक्ष होता, बिना फूल और बिना फल का,
क्योंकि अत्यधिकता की पीडा़ उजडे़पन से कहीं अधिक कड़वी है,
और अमीर का दुःख जिसे कोई ग्रहण नहीं करता,
कहीं बडा़ है एक भिखारी की निर्धनता से,
जिसे कोई नहीं देता।”

"काश मैं एक कुआं होता, सूखा और झुलसा हुआ,
और मनुष्य मेरे अन्दर पत्थर फेंकते;
क्योंकि यह अच्छा औऱ आसान है, व्यय हो जाना
अपितु जीवित जलकर उद्गम बनना,
जबकि मनुष्य उसकी बगल से गुजरें और उसका पान न करें।

"काश मैं एक बांसुरी होता, पैर के नीचे कुचली हुई;
क्योंकि यह चांदी के तार वाली एक वीणा होन से अच्छा हैं,
ऐसे मकान में जिसके मालिक के उंगलियां ही नहीं हैं,
और जिसके बच्चे बहरे हैं।"

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

लोगों की राय

No reviews for this book