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उपन्यास >> अपने अपने अजनबी

अपने अपने अजनबी

सच्चिदानंद हीरानन्द वात्स्यायन अज्ञेय

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :165
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9550
आईएसबीएन :9781613012154

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अज्ञैय की प्रसिद्ध रचना


लेकिन जाड़ों भर यों अकेले पड़े रहना साहस माँगता है - कंजूस होना ही तो काफी नहीं है; और बुढ़िया को कहीं कुछ हो-हवा जाए तो...

योके ने मानो अपने विचारों की गति रोकने के लिए ही कहा, 'थोड़ी-सी लकड़ी तो आज भी जलायी जा सकती है - मैं अभी आग जला दूँ?'

आंटी सेल्मा ने थोड़ी देर सोचती रहकर कहा, 'नहीं, अभी क्या करेंगे? या चाहो तो रात को जला लेना।' फिर थोड़ा रुककर एकाएक : 'या कि तुम्हारी अभी आग जलाकर बैठने की इच्छा है? मुझे तो आग अच्छी ही लगती है, पर - '

पर क्या? यही कि लकड़ी अधिक खर्च हो जाएगी? पर वैसा सोचना भी निरी कंजूसी नहीं है। कम-से-कम ढाई महीने वहाँ काटने की सम्भावना तो उन्हें करनी ही चाहिए - यानी बचे रहे तो। तीन महीने भी हो जाएँ तो हो सकते हैं। यों यह भी बिलकुल असम्भव तो नहीं है कि कोई उसे खोजने ही वहाँ आ जाए - घर के लोगों को तो पता ही है और पॉल तो यहाँ से एक ही दिन की दूरी पर होगा। पॉल तो रह नहीं सकेगा - जरूर उसे ढूँढ़ ही निकालेगा - लाखों, करोड़ों में तुरन्त पहचान लेता... वह दूसरी टोली के साथ दूसरे पहाड़ पर गया था और बर्फ से उतरते आते हुए नीचे मिलने की बात थी। ढाई महीने - तीन महीने! कब्रगाह-क्रिसमस! पाताल-लोक में देव-शिशु का उत्सव। नगर में भगवान! पॉल ढूँढ़ निकालेगा - पर किसको, या मेरी...

अनचाहे ही योके के मुख से निकल गया, 'नहीं आंटी सेल्मा, मुझे अच्छा नहीं लग रहा है। आग से शायद - '

आंटी सेल्मा फिर थोड़ी देर स्थिर दृष्टि से योके की ओर देखती रहीं फिर उन्होंने धीरे-धीरे, मानो आधे स्वागत भाव से कहा, 'खतरे की कोई बात नहीं है, योके! वैसे खतरा तुम्हारे लिए कोई नई चीज भी नहीं है। तुम तो तरह-तरह के खतरनाक खेल खेलती रही हो। लेकिन एक बात है। खतरे में डर के दो चेहरे होते हैं, जिनमें से एक को दुस्साहस कहते हैं; कई लोग इसी एक चेहरे को देखते हुए बड़े-बड़े काम कर बैठते हैं और कहीं-के-कहीं पहुँच जाते हैं। लेकिन धीरज में डर का एक ही चेहरा होता है, और उसे देखे बिना काम नहीं चलता। उसे पहचान लेना ही अच्छा है - तब उतना अकेला नहीं रहता। निरे अजनबी डर के साथ कैद होकर कैसे रह सकता है? ...अच्छा, तुम आग जला लो, फिर मेरे पास बैठो, बहुत-सी बातें करेंगे। मैं तो अजनबी डर की बात कह गयी - अभी तो हम-तुम भी अजनबी-से हैं, पहले हम लोग तो पूरी पहचान कर लें।'

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