उपन्यास >> अपने अपने अजनबी अपने अपने अजनबीसच्चिदानंद हीरानन्द वात्स्यायन अज्ञेय
|
86 पाठक हैं |
अज्ञैय की प्रसिद्ध रचना
लेकिन दूसरे दिन सवेरे ही फोटोग्राफर ने आकर जानना चाहा कि सेल्मा के यहाँ से पीने का पानी मिल सकता है या नहीं।
सेल्मा ने विस्मय दिखाते हुए कहा, 'पानी? मैं तो समझती थी कि तुम्हारे यहाँ साफ पानी बराबर रहता होगा - फोटोग्राफर का काम उसके बिना कैसे चल सकता है?'
मालूम हुआ कि पुल के काँपने से दवा की कुछ शीशियाँ पानी के ड्रम में गिरकर टूट गयी थीं और सारा संचित पानी दूषित हो गया था।
सेल्मा ने मानो मन-ही-मन परिस्थिति का मूल्य आँकते हुए कहा, 'पानी मेरे पास शायद चाय बनाने लायक भर होगा। मैंने अभी चाय भी नहीं बनायी है, कहो तो वही पानी तुम्हें दे दूँ। या कि यहीं एक प्याला चाय पी लो।'
फोटोग्राफर ने कहा, 'नहीं, तब तुम्हें तकलीफ नहीं दूँगा। चाय तो नदी के पानी में भी बन सकती है - एक बार उबल जाए तो कोई डर तो नहीं रहेगा।' और लौट गया।
समय नापने के कई तरीके हैं। एक घड़ी का है, जो शायद सबसे घटिया तरीका है। क्योंकि उसका अनुभव से कम-से-कम सम्बन्ध है। दूसरा तरीका दिन और रात का, सूर्योदय और सूर्यास्त का, प्रकाश और अँधेरे का और इनसे बँधी हुई अपनी भूख-प्यास, निद्रा-स्फूर्ति का है। यह यन्त्र के समय को नहीं, अनुभव के समय को नापने का तरीका है; इसलिये कुछ अधिक सच्चा और यथार्थ है।
फिर एक तरीका है, घरघराते हुए पानी में बहते हुए भँवरों को गिनकर और उनके ताल पर बहती हुई साँसों को गिनकर समय को नापने का तरीका। यह और भी गहरे अनुभव का तरीका है, क्योंकि यह समय के अनुभव को जीवन के अनुभव के निकटतर लाता है। समय और समयमुक्त, काल और काल-निरपेक्ष, अनित्य और सनातन की सीमा-रेखा और क्या है - सिवा हमारी साँसों के और साँसों की चेतना में होनेवाले जीवन-बोध के। साँस में ही जीवन-बोध हो, ऐसा नहीं : क्योंकि साँस लेना तो अनवधान अवस्था की क्रिया है। साँस की बाधा ही जीवन बोध है क्योंकि उसी में हमारा चित्त पहचानता है कि कितनी व्यग्र ललक से हम जीवन को चिपट रहे हैं। इस प्रकार डर ही समय की चरम माप है - प्राणों का डर...
|