लोगों की राय

धर्म एवं दर्शन >> असंभव क्रांति

असंभव क्रांति

ओशो

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :405
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9551
आईएसबीएन :9781613014509

Like this Hindi book 5 पाठकों को प्रिय

434 पाठक हैं

माथेराम में दिये गये प्रवचन

अगले रविवार को जब वे बच्चे फिर आए तो उस पादरी ने पूछा, तुमने कोई सेवा का कार्य किया तीन बच्चों ने हाथ उठाए। एक बच्चे से पूछा, उसने क्या किया उसने कहा, मैंने एक बूढ़ी औरत को सड़क पार करवाई। दूसरे से पूछा, उसने धन्यवाद दिया कि खुश हूँ मैं, तुमने बहुत अच्छा काम किया। दूसरे बच्चे से पूछा, तुमने क्या किया उसने कहा मैंने भी एक बूढ़ी औरत को सड़क पार करवाई। वह थोड़ा हैरान हुआ। लेकिन फिर उसको भी धन्यवाद दिया। और तीसरे से पूछा, तुमने क्या किया उसने कहा, मैंने भी एक बूढ़ी औरत को सड़क पार करवाई।

वह बहुत हैरान हुआ। उसने कहा, क्या तीन बूढ़ी औरतें तुम्हें पार करवाने को मिल गई। उन तीनों ने कहा, तीन कहाँ, एक ही बूढ़ी औरत थी। तो वह बहुत हैरान हुआ कि तुमको, तीन को उसे पार करवाना पड़ा। उन तीनों ने कहा, वह पार होना ही नहीं चाहती थी, बड़ी मुश्किल से पार करवाया। वह तो बिलकुल भागती थी--पकड़कर, बिलकुल जबर्दस्ती हमने पार करवाई। क्योंकि स्वर्ग जाना तो जरूरी है, और सेवा करनी ही पड़ेगी।

उस पादरी ने कहा, अब कृपा करके ऐसी सेवा मत करना। अच्छा किया कि तुमने औरत को ही पार करवाया। कहीं मकान मे आग लगवांकर लोगों को नहीं बचाया। या किसी को नदी में डुबाकर प्राण नहीं बचाए। यही बहुत है। अब तुम और सेवा मत करना।

सेवकों ने दुनिया में ऐसे बहुत से काम किए हैं। लेकिन उन्हें सेवा करनी जरूरी है, क्योंकि स्वर्ग जाना जरूरी है। ये सारी सेवा, ये सारे दान, ये सारी दया, ये सारी अहिंसा की बकवास--हमारे भीतर जो असली आदमी है, उसको छिपा लेती है। और वह जो असली आदमी है, वही है। जो कुछ भी होना है, उसके द्वारा होना है। जो भी जीवन में क्रांति या न-क्रांति, जीवन में कोई परिवर्तन या न-परिवर्तन, जो कुछ भी होना है, उस असली आदमी से होना है, उस फैक्चुअल आदमी से, जो मैं हूँ, जो आप हैं।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book