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धर्म एवं दर्शन >> असंभव क्रांति

असंभव क्रांति

ओशो

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :405
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9551
आईएसबीएन :9781613014509

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माथेराम में दिये गये प्रवचन

कैसे हम उन तथ्यों को देख सकेंगे, उसकी बात तो कल सुबह मैं करूंगा। अभी मैं इतना ही कहना चाहता हूँ कि आदर्शों के कारण हम नहीं देख पाते हैं। आदर्शों के कारण एक भ्रमजाल, एक इलूजन पैदा हो जाता है। और हम सब आदर्शों में पाले गए हैं और जी रहे हैं। इससे एक हिपोक्रेसी, एक पाखंड, एक झूठ, एक वंचना खड़ी हो गई है। और वही झूठ, वही वंचना, वही स्वयं को कुछ और समझना--जो कि हम हैं, उससे भिन्न, उससे विरोधी--वही वंचना हमारे जीवन का सारा स्वास्थ्य है।

एक युवक सारी पृथ्वी की परिक्रमा के लिए निकला हुआ था। उस विस्तृत यात्रा में एक अनजान-अपरिचित रास्ते पर एक फकीर से उसका मिलना हो गया। वह फकीर भी अपने गांव को लौटता था। वह युवक जिस देश से आता था, उस देश के सभी लोग सफेद कपड़े पहनते थे। और यह फकीर बड़ा अजीब मालूम पड़ा। यह पूरे ही काले कपड़े पहने हुए था। तो उस युवक ने उस फकीर से पूछा कि आप एकदम काले कपड़े पहने हुए हैं। हमारे देश में तो सभी लोग सफेद कपड़े पहनते हैं। उस फकीर ने कहा, सफेद कपड़े पहन सकूं ऐसा अभी मेरा मन कहाँ? मन है मेरा काला, इसलिए काले कपड़े पहने हुए हूँ।

वह युवक बोला, तब तो सफेद बिलकुल ही पहनने चाहिए। और अगर खादी के मिल जाएं तो और भी अच्छा। क्योकि काला मन हो तो सफेद कपड़े में छिप जाता है। और खादी के हों, तब तो सोने में सुगंध आ जाती है। हमारे मुल्क में तो लोग ऐसी नासमझी कभी नहीं करते कि कोई काला कपड़ा पहनता हो और काले चित्त का आदमी। कभी ऐसा हो ही नहीं सकता। उस फकीर ने कहा, लेकिन मैं दुखी हूँ। मैं वही कपड़े पहनना चाहता हूँ, जो मैं हूँ। क्योंकि सफेद कपड़े पहनने से तुम्हें धोखा हो जाएगा, लेकिन मुझे तो धोखा नहीं होगा। मैं तो जानूंगा। और सफेद कपड़ों के कारण और भी जानूंगा कि भीतर, भीतर सब काला है।

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