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धर्म एवं दर्शन >> असंभव क्रांति

असंभव क्रांति

ओशो

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :405
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9551
आईएसबीएन :9781613014509

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माथेराम में दिये गये प्रवचन

सीधी सी बात मैं कह रहा हूँ, उसे सीधे समझने की कोशिश करें। बीच में और बहुत शास्त्रों को, गुरुओं को, शास्ताओं को लाने का क्या प्रयोजन है अगर सीधे आप समझने की कोशिश करेंगे तो बड़ी आसानी हो जाती है। और तुलना करके समझने की कोशिश करेंगे तो बहुत कठिन हो जाता है। क्योंकि शब्दों की ही तो तुलना करेंगे। और शब्दों की तुलना से इतनी भ्रांतियां पैदा हुई हैं, जिनका कोई हिसाब नहीं है। क्योंकि पहले तो जो मैं कहना चाहता हूँ, वही शब्द में आधा मर जाता है। फिर आप जो समझना चाहते हैं, अगर तैयार हैं, किसी शास्त्र के माध्यम से समझने को तो जो आधा बचता है, उसकी हत्या आप कर देते हैं। फिर शब्द बिलकुल थोथा, चली हुई कारतूस की तरह आपके पास पहुँचता है, जिसमें कोई प्राण नहीं रह जाते। समझने की कोशिश सीधी होनी चाहिए।

आप एक गुलाब के फूल को देखते हैं तो आप जमाने भर के गुलाब के फूलों से तुलना करते हैं। तब उसको देखेंगे या कि सीधा देखेंगे, और क्या एक गुलाब के फूल की तुलना, किसी भी दूसरे गुलाब के फूल से की जा सकती है? कोई जरूरत भी नहीं है, संभावना भी नहीं है। हर गुलाब का फूल अपनी तरह का फूल है। अनूठा है, अद्वितीय है, बेजोड़ है। छोटा सही, बड़ा सही, कैसा भी सही--वह अपने तरह का है। उसे आप दूसरे गुलाब के फूल से कैसे तोलिएगा और तोलने में एक बात तय है, इस गुलाब के फूल को देखने से आप वंचित रह जाएंगे।

आज रात आकाश में तारे निकले हुए हैं। इनको तोलिए पिछली रात के तारों से और इसमें आप भूल जाइए, भटक जाइए और फिर इस रात के तारे आपको दिखाई नहीं पड़ेंगे। रोज चांद निकलता है, रोज सूरज निकलता है। हम रोज तौलते हैं हर चीज को।

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