धर्म एवं दर्शन >> असंभव क्रांति असंभव क्रांतिओशो
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माथेराम में दिये गये प्रवचन
भीतर परमात्मा निरंतर आप तक आने की कोशिश कर रहा है। लेकिन आप? आप इतने व्यस्त हैं कि आपकी इस व्यस्तता में बाधा देने जैसी अशिष्टता परमात्मा न करेगा। वह आपको परेशान नहीं करेगा। जब आप शांत हो जाएं तो वह आ जाएगा। वह उन मेहमानों में से नहीं है कि आप कुछ भी कर रहे हों और वह आ जाए। जब देखेगा कि आप तैयार हैं, तो वह तो हमेशा मौजूद है। भीतर कोई हमारे रास्ता खोज रहा है। लेकिन हम इतने, सतह पर इतने व्यस्त हैं, इतनी लहरों से भरे हैं कि उसे रास्ता नहीं मिलता है। कृपा करें, रास्ता आपको परमात्मा को नहीं खोजना है--परमात्मा आपको ही खोज रहा है। आप इतनी ही कृपा करें कि रास्ता दे दें। आप बीच में न खड़े हों अपने और परमात्मा के, तो सारी बात हल हो जाती है।
लेकिन शायद हमें इसका खयाल नहीं है। इन तीन दिनों में इस खयाल पर थोड़ा सा ध्यान ले जाएं। तीन दिन इस तरह जिएं कि आपको कोई भी काम नहीं है। और आश्रमों में, और सतों, साधुओं और महात्माओं के पास आप जाते होंगे, उस भांति मेरे पास न आएं। वे आपको काम सिखाते हैं। वे सिखाते हैं--प्रार्थना करो, पूजा करो, नाम जपो, गीता पढ़ो, यह करो, वह करो। बहुत जोर से करो। जितना ज्यादा करोगे--एक हजार दफे नाम जपोगे तो, एक लाख दफे जपोगे तो और फायदा है, एक करोड दफे जपोगे तो और फायदा है। एक दफा गीता पढ़ोगे तो कम, हजार दफे पढ़ोगे तो और ज्यादा। एक उपवास करोगे तो कम, हजार कर लोगे तो बहुत ज्यादा। वे आपको कोई काम सिखाते हैं। वे आपको किसी काम में लगाते हैं।
मैं आपको कोई काम सिखाने को यहाँ नहीं हूँ। मैं तो चाहता हूँ कि आप थोडी देर को बेकाम हो जाएं। आपके मन में, तन में कोई काम न रह जाए, तो शायद उस काम से रहित चित्त की अन-आक्युपाइड स्थिति में, अव्यस्त स्थिति में कुछ फलित हो जाए, कुछ घटित हो जाए।
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