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धर्म एवं दर्शन >> असंभव क्रांति

असंभव क्रांति

ओशो

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :405
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9551
आईएसबीएन :9781613014509

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माथेराम में दिये गये प्रवचन

लेकिन जैसी स्थिति है, वह यह है कि इन तीनों के बीच कोई संबंध नहीं है। बल्कि यह एक-दूसरे के विरोध में खड़े हैं। जो हम दिन में सोचते हैं, विचार करते हैं, रात सपने में उससे बिलकुल उलटा देखते हैं। सपने में हमारे पीछे छिपा हुआ मन प्रगट होना शुरू होता है। दिनभर में चेतन मन थक जाता है, सो जाता है। फिर रात, वह जो सबकांशस माइंड है, वह जो पीछे छिपा मन है, वह प्रगट होना शुरू होता है।

तो हम दिन में कुछ और होते हैं, सपने में कुछ और होते हैं-- बल्कि उलटे होते हैं। दिन में हम चोरी नहीं करते, सपने में चोरी कर लेते हैं। दिन में हम हत्या नहीं करते किसी की, सपने में हत्या कर देते हैं। फिर हमें हैरानी होती है सुबह जागकर--ये सपने मैंने कैसे देखे। मैंने तो कभी हत्या के लिए सोचा भी नहीं। मैंने तो कभी चोरी की ही नहीं। फिर मैंने सपने में कैसे चोरी की। सपने में कैसे हत्या की।

चेतन जो मन है, उसने नहीं सोचा हत्या के लिए, लेकिन अचेतन मन ने सोचा है। और चेतन मन उसे दबाए हुए बैठा है। जब सपना, नींद में चेतन मन सो जाता है तो अचेतन अपनी बातें प्रगट करना शुरू कर देता है। हमारे भीतर इस भांति खाइयां पैदा हो गई हैं। और इन सारी खाइयों को पैदा करने का सूत्र है--सप्रेशन, दमन।

आज तक यही समझाया गया है मन का दमन करो। मन में जो भी बुरा है, उसे दवाओ। लेकिन दबाने से वह कहाँ जाएगा? क्या दमन करने से कोई चीज नष्ट हो जाती है? दमन करने से नष्ट नहीं होती और गहरे प्रविष्ट हो जाती है। और भीतर गहराई में जाकर मौजूद हो जाती है। हम उसे दबा लेते हैं, वह हमारे प्राणों का हिस्सा हो जाती है।

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