धर्म एवं दर्शन >> असंभव क्रांति असंभव क्रांतिओशो
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माथेराम में दिये गये प्रवचन
सेक्स में क्या बुरा है। सेक्स तो जीवन का जन्म है। सेक्स तो सृजन है, क्रिएटिविटी का उसूल, नियम है। उसी काम से तो सारा जीवन विकसित होता है। पशु, पक्षी, पौधे, मनुष्य जीवन का जो केंद्रीय तत्व है, जिससे सारे जीवन की ऊर्जा जन्मती है और विकसित होती है, उसके आप शत्रु बनकर रह सकेंगे। और उसके शत्रु बनने में सिर्फ अपने को तोड़ सकते हैं और कुछ भी नहीं।
परमात्मा अगर जीवन में कहीं भी काम कर रहा है तो सबसे ज्यादा सेक्स में। परमात्मा का सृजन अगर कहीं भी सर्वाधिक सक्रिय है तो मनुष्य के सेक्स में, प्रकृति के सेक्स में। वही तो सूत्र है जिससे जीवन बनता और विकसित होता है। तो जीवन के इस उदगम के प्रति अगर हमारे मन में दुर्भाव है तो हमारे मन में जीवन के प्रति ही दुर्भाव है। और जब यह दुर्भाव होगा तो इसके दुष्परिणाम होने शुरू होंगे।
पहली बात तो तथ्यों को देखना और स्वीकार करना चाहिए। सेक्स की निंदा करने वाली परपराएं मनुष्य की शत्रु हैं। सेक्स के प्रति भी सम्मान और रिवरेंस का भाव होना चाहिए। सेक्स के प्रति तो इसलिए सम्मान का भाव होना ही चाहिए कि वह जीवन का केंद्र है, जीवन का उत्स, जीवन का स्रोत। हम मां-बाप के प्रति जो सम्मान का भाव रखते हैं, वह सम्मान का भाव तब तक झूठा रहेगा जब तक सेक्स के प्रति भी हमारे मन में सम्मान का भाव न हो। मां-बाप के प्रति और सम्मान का क्या कारण है? वे जन्म देने वाले सूत्र हैं, यही न। तो जन्म देने वाले सूत्र वे क्यों हैं और कैसे हैं, किस कारण हैं?
हमारा सब मां-बाप के प्रति आदर का भाव झूठा है और झूठा रहेगा। झूठा रहेगा इसलिए कि सेक्स के प्रति तो हमारा दुर्भाव है, ये दोनों बातें कंट्राडिक्ट्री हैं, ये दोनों बातें विरोधी है। मां-बाप के प्रति सच्चा आदर और प्रेम तभी हो सकता है जब सेक्स के प्रति भी आदर हो, निंदा और शत्रुता नहीं। पत्नी पति को आदर कैसे दे सकती है जब सेक्स के प्रति निंदा का भाव है। हम कहते हैं पति को परमात्मा समझो। समझे कैसे इस पति को परमात्मा। पति पत्नी को कैसे आदर दे सकता है - जानता है भलीभांति यही नरक का द्वार है। यही उसे सेक्स के जीवन में ले जाने वाली है। यही उपकरण है पाप का। तो इस पाप के उपकरण को कैसे आदर दे? पत्नी पति को कैसे आदर दे? बच्चे मां-बाप को कैसे आदर दें? मां-बाप बच्चों को कैसे आदर दें? यह सेक्स की बाई-प्रोडक्ट है। यह तो उसकी ही उत्पत्ति है। ये उसी से तो आते हैं, इनके प्रति आदर कैसे हो सकता है?
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