धर्म एवं दर्शन >> असंभव क्रांति असंभव क्रांतिओशो
|
5 पाठकों को प्रिय 434 पाठक हैं |
माथेराम में दिये गये प्रवचन
हम सबका मन अस्वस्थ हो गया है। फिर यह अस्वास्थ्य जीवनभर चक्कर काटता है क्योंकि बच्चे के मन में जो केंद्र बन जाते हैं, उनको पोंछना और मिटाना बहुत कठिन हो जाता है। एक अच्छी दुनिया तभी बनेगी जब वह सेक्स को परमात्मा की अनूठी बात स्वीकार करके आदर देना शुरू करेगी, नहीं तो अच्छी दुनिया नहीं बन सकती। जितना-जितना आदर, जैसे कोई मंदिर में प्रवेश करता है, सेक्स की भावना में प्रवेश करना मदिर में प्रवेश जैसा होना चाहिए। और आप शायद खयाल भी नहीं कर सकते, कल्पना भी नहीं कर सकते कि सेक्स के प्रति निंदा के कारण पति और पत्नी दो शत्रु है, मित्र नहीं।
मित्र हो नहीं सकते, क्योंकि मित्रता का सेतु घृणा और कंडेमनशन लिए हुए है। जिससे वे जुडे हैं, वह चीज ही, जोड़ने वाली चीज ही गलत और बुरी भाव लिए हुए है तो वह जोड़ने वाली चीज मित्रता कैसे बन सकती है और इस शत्रुता में से बच्चे पैदा होते हैं, वे बच्चे बहुत शुभ, बहुत सुंदर और श्रेष्ठ नहीं हो सकते। इसी तनाव, कानफ्लिक्ट, इस शत्रुता में से बच्चे आते हैं। इन दोनों का मन भयभीत, घबड़ाया हुआ, पाप से ग्रसित, पाप से दबा हुआ, डरा हुआ, और फिर इससे बच्चे आते हैं। इन दोनों के इस चित्त की अनिवार्य छाप उस आने वाले बच्चे में छूट जाती है।
जिस दिन पति और पत्नी एक-दूसरे से एक पवित्रतम संबंध अनुभव करेंगे, होलीएस्ट कि ये सेक्स के क्षण, ये काम के संबंध के क्षण पवित्रतम क्षण हैं, प्रार्थना के क्षण हैं। जिस दिन उनका यह मिलन एक प्रेयर, एक प्रार्थना बन जाएगा, उस दिन जो बच्चे पैदा होंगे वे बहुत दूसरा संस्कार, बहुत दूसरे बीज की तरह जगत में आएंगे। तब हम एक दूसरी प्रजा के जन्मदाता हो सकते हैं। फिर ये बच्चे पैदाइश से ही रोग चित्त में लेकर पैदा होते हैं। और उस रोग को फिर समाज और बढ़ाता है, और बढ़ाता है। फिर उस रोग का शोषण करने वाले लोग हैं, वे शोषण करते हैं। और एक चक्कर शुरू होता है जिस पर एक छोटा सा आदमी पिस जाता है बुरी तरह से।
|