धर्म एवं दर्शन >> असंभव क्रांति असंभव क्रांतिओशो
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माथेराम में दिये गये प्रवचन
प्रेम सेक्स का ट्रांसफार्मेशन है और कुछ भी नहीं। जो आदमी सेक्सुअल है, वह आदमी लविंग नहीं हो सकता। जो आदमी कामवासना से भरा है, उसमे प्रेम नहीं हो सकता है। प्रेम सेक्स की ही शक्ति का रूपांतरण है। जब चित्त सब भांति सेक्स से मुक्त हो जाता है, सेक्स को जानकर, परिचय से, ज्ञान से, तब सेक्स की शक्ति का क्या होगा वह शक्ति है। वह रूपांतरित हो जाती है, वह प्रेम बन जाती है। और यह प्रेम फिर नए ढंग का सृजन शुरू कर देता है, नया क्रिएशन शुरू कर देता है। प्रेम बहुत क्रिएटिव है। फिर प्रेम का एक-एक शब्द अदभुत रूप से सृजन करने में लग जाता है।
टालस्टाय एक दिन सुबह एक गांव की सड़क से निकला। एक भिखारी ने हाथ फैलाया। टालस्टाय ने अपने जेब तलाशे लेकिन जेब खाली थे। वह सुबह घूमने निकला था और पैसे नहीं थे। उसने उस भिखारी को कहा, मित्र! क्षमा करो, पैसे मेरे पास नहीं है, तुम जरूर दुःख मानोगे। लेकिन मैं मजबूरी में पड़ गया हूँ। पैसे मेरे पास नहीं है। उसके कंधे पर हाथ रखकर कहा, मित्र! क्षमा करो, पैसे मेरे पास नहीं है। उस भिखारी ने कहा, कोई बात नहीं। तुमने मित्र कहा, मुझे बहुत कुछ मिल गया। यू काल्ड मी ब्रदर, तुमने मुझे बंधु कहा। और बहुत लोगों ने मुझे अब तक पैसे दिए थे लेकिन तुमने जो दिया है, वह किसी ने भी नहीं दिया था। मैं बहुत अनुगहीत हूँ।
एक शब्द प्रेम का--मित्र, उस भिखारी के हृदय में क्या निर्मित कर गया, क्या बना गया। टालस्टाय सोचने लगा। उस भिखारी का चेहरा बदल गया, वह दूसरा आदमी मालूम पड़ा। यह पहला मौका था कि किसी ने उससे कहा था, मित्र। भिखारी को कौन मित्र कहता है इस प्रेम के एक शब्द ने उसके भीतर एक क्रांति कर दी, वह दूसरा आदमी है। उसकी हैसियत बदल गयी, उसकी गरिमा बदल गयी, उसका व्यक्तित्व बदल गया। वह दूसरी जगह खड़ा हो गया। वह पद-दलित एक भिखारी नहीं है, वह भी एक मनुष्य है। उसके भीतर एक नया क्रिएशन शुरू हो गया। प्रेम के एक छोटे से शब्द से।
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