धर्म एवं दर्शन >> असंभव क्रांति असंभव क्रांतिओशो
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माथेराम में दिये गये प्रवचन
मैं आपको कोई नई गुलामी का संदेश देने को नहीं हूँ। गुलामी से गुलामी की तरफ नहीं, गुलामी से स्वतंत्रता की तरफ यात्रा करनी है। वह मेरी बात मानकर नहीं हो सकता है। इसलिए मेरी बात मानने की जरा भी जरूरत नहीं है। मैं कहीं भी आपके रास्ते में खड़ा नहीं होना चाहता हूँ। मैंने निवेदन कर दी अपनी बात--वह सोचने-समझने की है। अगर वह फिजूल मालूम पड़े तो उसे एकदम फेंक देना। क्योंकि जानकर आपने फेंकने में संकोच किया कि वह आपको पकड़ लेगी। जरा ही आप डरे कि इसको न फेंकें, वह आपकी गुलामी बन जाएगी। फिर वह आपके भीतर जड़ें फैलाना शुरू कर देगी। कल आप एक नई गुलामी में फिर से आबद्ध हो जाएंगे। एक नया कारागृह फिर खड़ा हो जाएगा। अब तक के सभी गुरु, सभी शास्ता मनुष्य के लिए कारागृह इसी तरह बन गए।
मैं आपके लिए कोई कारागृह, कोई इमप्रिजनमेंट नहीं बनना चाहता हूँ। इसलिए मेरी बात मानने का जरा भी मोह करने की जरूरत नहीं है। मैं कह रहा हूँ आप तथ्यों को विचार कर लें, सोच लें, और अगर तथ्य दिखाई पड़ते हों तो क्या मैं आपसे यह कहूँ कि आपको फिर एक्ट करना पड़ेगा, आपको कुछ करना पड़ेगा तथ्य दिखाई पड़ेंगे तो आप कुछ करेंगे ही।
तथ्य दिखाई नही पड़ते, इसलिए कुछ नहीं करते।
रास्ते पर सांप जाता आपको मिल जाए, दिखाई पड़ जाए तो क्या आप पूछेंगे अब मैं क्या करू? आप छलांग लगा जाएंगे, पूछेंगे नहीं। पूछने की सुविधा और फुर्सत वहाँ आप नहीं एंगे। घर में आग लग जाए तो आप क्या पूछेंगे कि अब मैं क्या करूं आप बाहर निकल जाएंगे।
जिस दिन आपको यह दिखाई पड़ जाए कि आपका मन हजारों साल से गुलामी में बंधा हुआ है, उस दिन क्या आप किसी से पूछेंगे, मैं क्या करूं? नहीं आप गुलामी के बाहर कूद जाएंगे।
देखते ही क्रिया होनी शुरू हो जाती है। आपने देखा नहीं, इसलिए क्रिया नहीं हो रही। आपको पता चल जाए कि आपको कैंसर हो गया है, आप फिर पूछेंगे क्या करूं? आप फौरन चिकित्सा के लिए दौड़-धूप में लग जाएंगे। आप कैंसर के बाहर होना चाहेंगे।
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