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धर्म एवं दर्शन >> असंभव क्रांति

असंभव क्रांति

ओशो

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :405
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9551
आईएसबीएन :9781613014509

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माथेराम में दिये गये प्रवचन

इस देश में संन्यास के नाम पर पलायनवादी, एस्केपिस्ट प्रवृत्तियों को अद्भुत रूप से पूजा मिली है। जो लोग जीवन को छोड़ दें, जीवन से भाग जाएं, जीवन के शत्रु हो जाएं, उन सबको हम आदर देते हैं। तो फिर अगर जीवन उजड़ जाता हो तो कसूर किसका है फिर अगर जीवन बेरौनक हो जाता हो, अगर जीवन दुःख से भर जाता हो, और जीवन में आनंद की कोई वर्षा न होती हो, तो कौन जिम्मेवार है फिर इसमें आश्वर्य क्या है?

एक संन्यासी अपने भक्तों के बीच बोलता था। उसने एक प्रश्न किया। उसने अपने भक्तों से कहा, तुम में से कितने लोग स्वर्ग जाना चाहते हैं? सभी हाथ उठ गए, सिर्फ एक हाथ को छोड़कर। संन्यासी बहुत हैरान हुआ। हाथ नीचे गिरवाकर उसने कहा, अब वे लोग हाथ उठाए, जो नरक जाना चाहते हैं। एक भी हाथ नहीं उठा। उस आदमी ने भी हाथ नहीं उठाया, जिसने स्वर्ग जाने के लिए भी हाथ नहीं उठाया था। संन्यासी हैरान हुआ, उसने कहा, महानुभाव, आप कहाँ जाना चाहते हैं?

उस आदमी ने कहा, न तो मैं स्वर्ग जाना चाहता हूँ, न नरक। मैं इस जमीन पर रहना चाहता हूँ। और इस जमीन को, और इस जमीन के जीवन को आनंदित देखना चाहता हूँ। ये तुम्हारे स्वर्ग जाने वाले लोग इस जमीन को नरक बनाने के कारण बने हैं। और नरक तो जाने को कोई तैयार नहीं है, सारे लोग स्वर्ग जाने को तैयार हैं, इस कारण यह पृथ्वी नरक हो गई है। क्योंकि इस पृथ्वी को कौन स्वर्ग बनाए? इस जीवन को कौन सुंदरता दे? इस जीवन की कुरूपता को कौन मिटाए?

जो लोग जीवन को छोड़ने की शिक्षा देते हैं, वे तो जीवन को सुंदर न बनाना चाहेंगे, क्योंकि जीवन अगर सुंदर हो जाए, उसकी सारी अग्लीनेस, उसकी कुरूपता मिट जाए, तो शायद कोई जीवन को छोड़ने की, भागने की कल्पना भी न करे।

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