लोगों की राय

धर्म एवं दर्शन >> असंभव क्रांति

असंभव क्रांति

ओशो

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :405
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9551
आईएसबीएन :9781613014509

Like this Hindi book 5 पाठकों को प्रिय

434 पाठक हैं

माथेराम में दिये गये प्रवचन

सब तरफ से वे उसे चिढ़ा रहे हैं। सब तरफ से पूछ हिला रहे हैं। अब बहुत मुश्किल हो गई। वह तो बहुत घबराया कि अजीब बात है। आज तक जीवन में ये बदरों से कभी कोई संबंध नहीं रहा, कोई मैत्री नहीं रही। कोई वास्ता नहीं रहा इन बदरों से, यह हो क्या गया है मुझे। नहाया, धोया, सब उपाय किए, अगरबत्ती जलाई, धूप-दीप जलाए--जैसे कि धार्मिक लोग करते हैं, जैसे इनसे कुछ हो जाएगा। कमरा बंद किया, नहा-धोकर बैठा, लेकिन कितने ही नहाओ-धोओ, बंदर कोई पानी से डरते नहीं हैं। और कितने ही धूप-दीप जलाओ, बदरों को पता भी नहीं उनका। और बंदर बाहर होते तो कोई उपाय भी था। बंदर थे भीतर। उनको निकालने का कोई रास्ता न था। वह जितनी आँख बंद करने लगा, रात जितनी बीतने लगी--मंत्र हाथ में उठाता था, मंत्र बाहर ही रह जाता था, बंदर भीतर। सुबह तक वह घबड़ा गया। समझ गया कि यह मंत्र इस जीवन में अब सिद्ध नहीं हो सकता।

गया, साधु को मंत्र वापस दिया और कहा, अगले जन्म में फिर मिलेंगे। लेकिन खयाल रखना यह कंडीशन फिर से मत लगा देना। यह शर्त मत लगा देना दोबारा, मुश्किल हो जाएगा। यह बंदर तो! हद हो गई। निकालना चाहा, तो बंदर मौजूद हो गए।

आप भी कुछ निकालना चाहें, जिसे निकालना चाहें, वह मौजूद हो जाएगा। यह सीक्रेट ट्रिक है। यह तरकीब है भीतर कि आपको समझाया जाता है विचारों को निकालो, फिर आप आँख बंद करके बैठे हैं, वे निकलते नहीं हैं, वे और चले आ रहे हैं। अब आप परेशान हुए जा रहे हैं।

और जिनने कहा है आपसे, विचारों को निकालो, उन्हीं के पास पहुँच रहे हैं सलाह के लिए कि कैसे विचारों को निकालें। वे कहते हैं और ताकत लगाओ। जितनी आप ताकत लगाओगे, उतना ही निकालना असंभव होता चला जाएगा। और तब आप सिर पीट लोगे। और उनसे पूछोगे कि एक्सप्लेनेशन क्या है इस बात का कि मैं निकालने की कोशिश करता हूँ, विचार तो निकलते नहीं हैं।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book