उपन्यास >> फ्लर्ट फ्लर्टप्रतिमा खनका
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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।
‘आप, आप गये नहीं?’
‘नहीं। तुमसे कुछ बात करनी थी।’
‘क्या?’ उसकी साँसें अटक रही थीं। आँखें फैलती जा रही थीं। अजीब लड़की थी! समझ नहीं आ रहा था कि क्या कहूँ उसे?
‘तुम मुझसे इतना डरती क्यों हो?’
‘आपसे?’ उसकी पुतलियाँ और फैल गयीं। ‘ऐसा तो नहीं है।’ उसे खुद इस बात पर यकीन नहीं था। उसके लफ्ज और भाव दो विपरीत दिशाओं में भागते दिख रहे थे मुझे लेकिन मुझे जबरदस्ती उस पर यकीन करना था जो वो साबित करना चाहती थी।
अपनी हँसी से जूझते हुए- ‘चलो ये अच्छी बात है कि तुम मुझसे घबराती नहीं लेकिन अगर थोड़ा भी कोई डर या झेपं है तो भी उसे अपने चेहरे पर मत आने दो। हमें साथ में काम करना है और जिस तरह तुम मेरे सामने बर्ताव करती हो, इस तरह तुम्हें काम करने में दिक्कत आयेगी।’ मेरा लहजा जितना नर्म हो सकता था उतना था ताकि वो कम से कम मुझे सुने बिना ना चली जाये। उसकी आँखें भले ही जमीन पर गड़ी थीं लेकिन मुझे पता था कि वो मेरी बातें समझ रही है।
मैं बात खत्म करते ही संजय के केबिन की तरफ वापस मुड गया। कुछ कदम ही चला हूँगा कि उसने पीछे से कहा- ‘आप वो है जिसने मुझे यहाँ सबसे ज्यादा डाँटा है।’ आखिर उसने हँसते हुए एक राज खोल दिया।
‘मैंने ऐसा किया?’ मैं हँसते हुए पूछा ‘किसलिए?’ मैं लगातार मुस्कुरा रहा था और एक-एक कदम उससे दूर जा रहा था।
‘पता नहीं कितनी बार! जब आप और यामिनी मुझे सिखाते थे।’
मेरे कदम जम गये! वो सही थी। वो वक्त ही ऐसा था.... एक नाराजगी हर वक्त मुझ पर सवार रहती थी जिसे मैं कई बार उन लोगों पर भी निकाल देता था जिनसे कोई मतलब ही नहीं था। कई बार ऐसा हुआ कि मैंने यामिनी की चिढ़ डॉली और बाकी कई नये चेहरों पर निकाली क्योंकि यामिनी पर निकाल नहीं सकता था। कई बार ऐसा हुआ होगा.... खास तौर पर तब जब मुझे हर्ट कर देने के बाद भी बहुत ही खुशनुमा और आम बर्ताव करती थी, मानों कुछ हुआ ही नहीं है।
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