उपन्यास >> फ्लर्ट फ्लर्टप्रतिमा खनका
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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।
‘अच्छा! सब तो इस चक्कर में रहते है कि उनकी किसी लड़की से दोस्ती हो लेकिन तू है कि बस। तेरे पीछे लड़कियाँ भागती हैं तो तू उनसे दूर भागता है। सड़ा-सा मुँह बना के घूमता रहेगा, फिर भी पता नहीं क्यों, तुझे लड़कियाँ इतना पसन्द करती है! क्यों करता है तू ऐसा?’
‘तू तो जानता है समीर, घर माँ चलाती है। उनको पता चलेगा कि मैं ये सब कर रहा हूँ तो तुझे पता है न क्या होगा फिर। मेरा साँस लेना भी मुश्किल हो जायेगा घर में। वैसे ही प्रीती की वजह से घर में बहनों ने चिढ़ाना शुरू कर दिया था और गर्लफ्रेन्ड पर खर्च करने के लिए मेरे पास पैसे नहीं होते।’
‘हाँ यार ये तो है। प्रीती के लिए फूल ला-लाकर मेरा तो बजट ही खराब हो गया था। तो अंश, फिर वो रमा दीदी कैसी है? तेरे तो मजे हैं। इधर रमा, उधर प्रीती।’ समीर ने चिढ़ाते हुए कहा।
‘क्या मजे हैं? प्रीती से पीछा छुड़ाने के लिए उससे बात करता हूँ। पता है, रमा का एक बॉयफ्रेन्ड भी है। जैसे ही उसके बॉयफ्रेन्ड को पता चलेगा कि वो मेरे साथ है वैसे ही वो कुछ न कुछ प्राब्लम करेगा और वो रमा मेरा पीछा छोड़ देगी।’
‘हम्म, ये सही है। ठीक किया तूने।’
कुछ देर हम चुपचाप चलते रहे और फिर- ‘तो समीर, तेरी प्रीती मानी?’ मैंने पूछा।
‘ना, नहीं मानी अब तक। तुझे कहा तो था कि वो तो मीराबाई बन गयी है। अब भी तुझे ही देखती रहती है।’
मेरा और रमा का अफेयर स्कूल में बहुत जल्द मशहूर हो गया। स्कूल में कुछ को प्रीती के बारे में पता था, कुछ को रमा के बारे में और कुछ ने अपनी गलतफहमी को पसन्द का नाम दे दिया। कुछ ने जानबूझ कर ये बात फैला दी कि मैंने उनको प्रपोज किया है। मैं लड़कियों में एक क्रेज बन गया था। सब समझने लगे कि मैं वाकई इन सब लड़कियों के साथ हूँ वो भी एक ही वक्त में। मैंने कुछ लोगों की गलतफहमी को दूर भी किया लेकिन सबको समझा पाना मुमकिन नहीं था। यहीं से मुझे सबकी तरफ से एक खिताब मिला.... फ्लर्ट!
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