उपन्यास >> फ्लर्ट फ्लर्टप्रतिमा खनका
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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।
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संजय, मैं और वकील पुलिस
चौकी की सीढ़ियाँ उतर ही रहे थे कि कुछ तीन पत्रकारों ने हमें घेर लिया।
देर रात की बात ना होती तो ये भीड़ और ज्यादा हो सकती थी। वकील बहाने
बनाकर निकल गया और अब मैं और संजय ही बचे थे।
संजय ने दो से बात की और कुछ पैसे देकर उन्हें मना लिया ये खबर अपने तक ही रखने के लिए लेकिन तीसरा पत्रकार एक लड़की थी। अपनी बातचीत के तरीके से वो कोई नौसिखिया लग रही थी। चूँकि उसके पास योगिता की सबसे पहली और ओरिजनल स्टेटमेन्ट थी, वो किसी भी मामूली सी कीमत पर बात दबाने को तैयार नहीं हुई।
वो संजय के साथ मोलभाव कर रही थी तभी उसके आई कार्ड पर मेरी नजर गयी।
‘आप असेन्शनल से हैं?’
उसके हाँ कहते ही मैंने एक नम्बर डायल कर दिया। जल्द ही मेरी कॉल उठ गयी।
‘हाँ सोनाली..... बस बढिया! मुझे जरा एक छोटी सी मदद चाहिये थी आपकी। आपकी एक दोस्त यहाँ हमसे कुछ सवाल जवाब कर रही है।’ मैंने कॉल होल्ड की-’आपका नाम?’
‘एकता।’ उसने बड़ी सी आँखें कर जवाब दिया।
‘ये कोई एकता हैं।.... ओ के थैक्स। गुड नाईट।’
यहाँ मैंने कॉल काटी और उधर एकता का मोबाइल बज गया। सोनाली ने बमुश्किल 2 या ज्यादा से ज्यादा 4 लफ्ज उसे कहें होगें और वो अपने बर्ताव के लिए माफी माँगकर चली गयी।
संजय सब कुछ देख रहा था। एकता के जाते ही उसने मेरी पीठ पर हाथ मारा-’सीख रहे हो?’
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