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उपन्यास >> फ्लर्ट

फ्लर्ट

प्रतिमा खनका

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :609
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9562
आईएसबीएन :9781613014950

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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।

‘देख अंश! तुझे पता है ना कि कितनी दिक्कतें आती है मुझे घर चलाने में। ना तो मेरे पास इतने पैसे हैं न ही मैं चाहती हूँ कि तू जाये।’ मम्मी ने अपना फैसला सुना दिया था।

‘ममा लेकिन समस्या क्या है जाने में? मैं वहाँ से मैं जल्दी वापस आ जाऊँगा। ये तो एक टूर जैसा है। कुछ चार-पांच दिनों की बात है।’

‘तू कभी अकेला कहीं गया है क्या? मैं तेरे साथ जा नहीं सकती। अब क्या चारा बचता है हमारे पास? मैं तुझे वहाँ अकेले नहीं जाने दूँगी। ये सब तू बाद में भी कर सकता है। अभी पढ़ाई पर ही ध्यान दे, बस।’

‘लेकिन मम्मी इससे मुझे पैसे भी मिलेंगे और करियर भी।’

‘अंश ये करियर नहीं होता। कुछ और कर जिसमें कल तुझे धक्के न खानें पडें।’

‘ममा ये मैं बस टाईम पास के लिए कर रहा हूँ। जब तक पढ़ाई पूरी न हो जाये। थोड़े पैसे भी मिल जायेंगे। प्लीज!’

‘अगर मैं फिर भी मना करूं तो?’ मम्मी ने मेरी तरफ देख कर पूछा।

‘तो मैं नहीं जाऊँगा।’ मेरा जवाब काफी बोझिल था इससे मम्मी थोड़ी नर्म पड गयीं।

‘देख अंश। तू नहीं जानता कि तू क्या है मेरे लिए। मैं तेरी बहनों से ज्यादा तेरे साथ सख्ती करती हूँ क्योंकि कि तू ही मेरी एक उम्मीद है, मेरे पास तेरे अलावा और कोई नहीं है। न मेरा न तेरी बहनों का। मैं तुझे इस तरह नहीं छोड़ सकती इस भीड़ में। अभी कल तक ही तो तेरा हाथ पकड़ कर तुझे हर जगह ले जाती थी और आज तू कह रहा है कि तुझे अकेले जाने दूँ? नहीं! मैं इतना बड़ा जुआ नहीं खेल सकती।’

मैं माँ को हमेशा से जानता था, समझता था और यही वजह थी कि मैं खुद के मन को हर जगह मारकर भी उनसे कोई शिकायत नहीं करता था। मैं जानता था कि उनके लिए मैं क्या हूँ और उनका यही जवाब होगा, ये भी पता था लेकिन खुद को भी समझा नहीं पा रहा था। मैं नाम कमाने के लिए ये सब नहीं करना चाहता था और न ही इस पेशे में मेरी कोई दिलचस्पी थी। उस वक्त मुझे ये सिर्फ पैसा कमाने का एक जरिया लगा, जो किस्मत से मुझे मिला था।

आखिरी बार मैंने माँ से इस बारे में बात की।

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