उपन्यास >> गंगा और देव गंगा और देवआशीष कुमार
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आज…. प्रेम किया है हमने….
मामी 2
‘‘.....और क्या हाल है तुम्हारी हलवाइन का? क्या उसने तुम्हें अपना हलवा खिलाया?‘‘ गीता मामी ने मजाक करते हुए पूछा।
मामी का मतलब उस हलुवे से नहीं था जो गंगा का बाबू सर्दियाँ शुरू होते ही ...हर सुबह चालीस-पचास किलो लम्बी-लम्बी, लाल गाजर कसकर बनाता था, बल्कि मामी का मतलब दूसरे वाले हलुऐ से था। मैंने समझ लिया....
पर ये क्या? देव को गुस्सा आ गया।
‘‘मामी! गंगा नाम है उसका!‘‘ तुमसे कितनी बार कहा है कि उसे हलवाइन कह कर मत पुकारा करो!
हमें गंगा में अपना भगवान दिखाई देता है! हमारे भगवान का अपमान मत करो‘‘ देव ने बड़ा टाइट होकर कहा।
‘‘अच्छा-अच्छा! सॉरी-सॉरी!‘‘
‘‘गंगा का क्या हाल है?‘‘ मामी ने तुरन्त अपने कथनों में सुधार किया। मामी देव का गुस्सा देख डर गयी थी। अब उन्होनें आदरपूर्वक पूछा।
‘‘उसे सर्कस दिखाया! पिक्चर भी दिखाई!‘‘ देव ने बताया।
‘‘किस भी ले ली!‘‘ बहुत अधिक शर्मीले देव ने शर्माते हुए कहा।
‘‘हाय हाय देव! तू तो बड़ा तेज निकला!
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