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उपन्यास >> गंगा और देव

गंगा और देव

आशीष कुमार

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :407
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9563
आईएसबीएन :9781613015872

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आज…. प्रेम किया है हमने….

चिट्ठी

कुछ दिन और बीते। देव ने गंगा का बहुत इंतजार किया कि शायद गंगा देव की उदासी, उसके दुख को पहचाने पर हमेशा से कमअक्ल और अपरिपक्व दिमाग वाली गंगा देव के दुख को समझ न पाई।

देव का दिल टूट गया। उसने कालेज जाना बन्द कर दिया। पढ़ाई-लिखाई से देव का मन पूरी तरह हट गया। मैंने देखा....

पर जैसे-जैसे दिन बीते देव को गंगा की याद सताने लगी। गंगा को सच्चाई बताने के लिए देव को एक आखिरी उपाय सूझा। उसने एक लम्बी-चौड़ी चिट्ठी लिखी और सुबह होते ही डाकखाने जाकर चिट्ठी पोस्ट कर दी।

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शाम के 4 बजे। रानीगंज। डाकिया देव की चिट्ठी लेकर रानीगंज पहुँचा....

‘‘किसी गंगा के नाम चिट्ठी है!‘‘ डाकिये ने गंगा के बाबू ‘गंगासागर हलवाई से पूछा।

‘‘हाँ! हाँ! हमार बिटिया के नाम गंगा है!‘‘ वो बोला।

‘‘यहाँ साइन करो!‘ डाकिये ने चिट्ठी गंगा के बाबू को दे दी।

पर से क्या? चिट्ठी बहुत भारी थी क्योंकि देव ने उसे कई पन्नें में लिखा था इसलिए इस चिट्ठी का वजन बढ़ गया था। गंगा के बाबू ने सोचा कि शायद कोई नौकरी का कागज है। वो 8वाँ पास था और हिन्दी ठीक-ठीक पढ़ सकता था। मैंने जाना...

गंगा के बाबू ने चिट्ठी पढ़ना शुरू की ....

‘‘प्रिय गंगा
मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ। मैं तुम्हारे बिना एक पल भी नहीं जी सकता और मैं तुम्हारे बिना मर जाऊँगा ...‘‘

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