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उपन्यास >> गंगा और देव

गंगा और देव

आशीष कुमार

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :407
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9563
आईएसबीएन :9781613015872

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आज…. प्रेम किया है हमने….

पश्चाताप

पूरी चिट्ठी पढ़कर गंगा के रोये न चुका। रोते-रोते गंगा की हालत खराब हो गई। गंगा को पता चला कि अपनी मूर्खतावश उसने देव को भारी कष्ट पहुँचाया है। गंगा को पता कि देव उससे निगेटिव वाला नहीं बल्कि पॉजिटव वाला प्यार करता था। गंगा को पता चला कि देव ने किस प्रकार शिव से सिर्फ मृत्यु ही माँगी थी जब गंगा ने देव से सारे रिश्ते खत्म कर दिये थे।

गंगा को पता चला कि उसके उग्र, आक्रामक, व रौद्र स्वभाव के होते हुए भी देव ने गंगा से सच्चा प्यार किया था और अन्त में गंगा को पता चला कि सच में देव को गंगा में ही अपना भगवान दिखाई देता था। आज ये सब गंगा ने जाना। मैंने देखा...

गंगा ने पूरी चिट्ठी पढ़ अपनी माँ रुकमणि को दी जो अनपढ़ थी और अपने बाबू को देने को कहा। गंगा के बाबू गंगासागर हलवाई ने पूरी चिट्ठी पढ़ी। उसे भी सच का पता चला। मैंने नोटिस किया...

गंगा के महाक्रोधी लेकिन दिल से साफ बाबू को पता चला कि देव गंगा से सच्चा-सच्चा, असली-असली वाला प्यार करता है। बिल्कुल वैसा वाला प्यार जैसा वो गंगा की माँ ‘रुकमणि‘ से करता है। उसे ये भी पता चला कि सच में देव को उनकी भवानी में ही अपना भगवान दिखाई देता है। गंगा के बाबू ने जाना। मैंने देखा...

पूरी चिट्ठी पढकर गंगा के परंपरावादी और पुराने रीति-रिवाजों के साथ जीने वाले बाबू को पता चला कि इस पूरी दुनिया में उसकी बेटी को देव से अधिक प्यार करने वाला, उसका खयाल रखने वाला लड़का वो अपनी हलवाईयों वाली बिरादरी में भी नहीं ढूँढ़ पाऐगा। उसे ये भी पता चला कि अपनी बेटी के लिए एक पढ़ा-लिखा, नेक, शरीफ, सीधा-साधा, कुलीन लड़का पाने का जो सपना वो हमेशा देखा करता था अब वो देव पूरा कर सकता है। वो सपना अब हकीकत बन सकता है।

गंगा के बाबू ने देव की चिट्ठी कई बार पढ़ी। जितनी बार वो चिट्ठी पढ़ता था उतनी बार उसे अहसास होता था कि सनकी, पागल और गुस्सैल गंगा के लिए देव से अच्दा वर कोई हो ही नहीं सकता। गंगा के बाबू मतलब गंगासागर हलवाई का जैसे हदय परिवर्तन हो गया। वो दौड़ा-दौड़ा भीतर गंगा के पास गंया।

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