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उपन्यास >> गंगा और देव

गंगा और देव

आशीष कुमार

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :407
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9563
आईएसबीएन :9781613015872

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आज…. प्रेम किया है हमने….

शादी की सालगिरह

कुछ महीनों बाद। गंगा और देव की शादी की सालगिरह पड़ी। मुझे पता चला...

सुबह हुई। दोपहर हुई। शाम हुई। और फिर रात के नौ बजे। देव व गंगा के बाबू गंगासागर हलवाई ने अपनी दुकान बढ़ाई मतलब कि बन्द की। हमेशा की तरह सारे बर्तन, भगौने व कढाईयाँ धोई और उन्हें नियत स्थान पर रखा। वही दूसरी ओर सारे मेहमान घर में एकत्रित हो चुके थे। पूरा दिन दुकान पर खड़े-खड़े काम करने के बाद भी देव की कमर का बुरा हाल था। पर फिर भी देव ने कुछ उर्जा बचा के रख ली थी।

इस अवसर पर आज गंगा ने लाल रंग की साड़ी पहनी और जूड़ा भी बाँधा। अब शादी के एक साल बाद गंगा के काफी अक्ल आ गयी थी। गंगा ने आखिकार किसी तरह जूड़ा बाँधना सीख ही लिया था। मैंने पाया...

लाल साड़ी में आज गंगा बिल्कुल काजोल लग रही थी। देव ने पाया....

मेरी आँखों में तू है समाया......
तेरा साया तो है मेरा साया......
तेरी पूजा करूँ मैं तो हर दम!!
ये है कैसे भरम ?
कभी खुशी कभी गम!
ना जुदा होंगे हम.....
कभी खुशी कभी गम!
इन लबों पर तेरा.......
बस! तेरा नाम हो.......
प्यार ना! प्यार ना!... प्यार ना हो कभी कम...
ये है कैसे भरम ?
कभी खुशी कभी गम!
ना जुदा होंगे हम.....
कभी खुशी कभी गम!

देव ने गाया... गंगा के लिए शादी की सालगिरह के इस अवसर पर। मौजूद सभी मेहमानों ने सुना। सभी ने देव के गाने की तारीफ की। मैनें भी...

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