उपन्यास >> गंगा और देव गंगा और देवआशीष कुमार
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आज…. प्रेम किया है हमने….
एक साल बाद
रानीगंज के सामुदायिक केन्द्र में गंगा को भर्ती करवाया गया। गंगा को डिलीवरी होने वाली थी। एक तरफ जहाँ पूरा परिवार बहुत खुश था, वहीं सभी लोग चिन्तित भी बहुत थे जच्चा-बच्चा के स्वास्थ्य को लेकर....
‘डाक्टर साहब! मैं चाहता हूँ कि मेरी वाइफ की नार्मल डिलीवरी हो!’ देव ने दोनो हाथ जोड़ कर डाक्टर से कहा। ये पहली दफा था कि देव ने अपनी जिन्दगी में किसी के आगे हाथ जोड़े थे।
‘मैं बिल्कुल नहीं चाहता कि आप आँपरेशन करें! गंगा को चीड़-फाड़ से बहुत डर लगता है! अगर उसने आप लोगों के आपरेशन वाले चाकू, सीजर्स, कैचियाँ आदि देख लिए तो मेरी गंगा तो बेहोश ही हो जाएगी!’ देव बड़ी बेचैनी से बोला व्याकुल होकर जैसे बच्चा गंगा को नहीं बल्कि देव को पैदा होने वाला हो।
‘....पैसे चाहे जितने लग जाएँ पर आप नार्मल डिलीवरी ही करें!’ देव ने डाक्टर्स से जोर देकर कहा।
‘जी!’ डाक्टर्स की टीम ने सुना।
‘हम लोग अपनी तरफ से पूरी कोशिश करेंगे कि नार्मल डिलीवरी हो पर यदि माँ की जान को खतरा हुआ तो?’ डाक्टरों ने पूछा।
‘...जब कोई चारा न हो! जो ही आप आँपरेशन करियेगा!!’ देव भारी स्वर में बोला बेमन से।
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जब तक गंगा डिलीवरी रूम में रही सारा परिवार गंगासागर हलवाई, रुकमणि, सावित्री व अन्य लोग बस भगवान का नाम ही लेते रहे जिससे सब कुछ कुशल-मंगल निपट जाए। गंगासागर हलवाई ‘राम! राम! राम! राम!....., देव की माँ सावित्री ‘श्री हरि! श्री हरि!, वहीं गंगा की माँ रुकमणि ‘भोलेनाथ बचाईलेओ! भोलेनाथ बचाईलेओ!.. जपती रही वही देव ‘ऊँ नमः शिवाय’ का जाप करता रहा।
.....आखिर में अनेक सदियों जैसे लम्बे प्रतीत होने वाले भारी पलों को सभी ने राम नाम लेते हुए पार किया।
गंगा ने दो जुड़वा पुत्रियों को जन्म दिया।
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