उपन्यास >> गंगा और देव गंगा और देवआशीष कुमार
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आज…. प्रेम किया है हमने….
चालीस साल बाद
गंगा और देव अब बूढ़े हो चुके थे। मैंने देखा...
गंगा की बिल्लौरी आँखें जिनसे गंगा सभी को डराया करती थी, अब उन आँखों में एक मोटा सा हाई पावर वाला चश्मा लग गया था। गंगा के नेत्रों की ज्योति अब कमजोर पड़ गयी थी।
जवानी के दिनों में गंगा के जिन फूले-फूले गालों को देख कर देव गंगा पर मर मिटा था अब उन गालों में झुर्रियाँ पड़ गयी थीं। गंगा के सारे बाल अब बिल्कुल सफेद हो गये थे और अब वो बहुत थोड़े ही बचे थे। गंगा जो पहले बहुत उर्जावान रहती थी अब गंगा के शरीर की शक्ति क्षीण हो गयी थी। गंगा की पीठ झुक गयी थी। अब वो एक लाठी के सहारे चलती थी।
वहीं दूसरी ओर देव को भी समय ने अंततः छू ही लिया था। हमेशा जवान दिखने वाला देव भी अब बूढ़ा हो चुका था। देव के शरीर की हड्डियाँ कमजोर हो चुकी थीं। उसके पैरों में हमेशा दर्द रहता था। डाक्टर ने देव को कैल्सियम की गोलियाँ लिखी थीं।
गंगा और देव अब दोनों ही अत्यधिक वृद्व हो चुके थे। दोनों ही ये बात अब जान गये थे... कि अब मृत्यु समीप है।
तभी गंगा को कुछ सूझा...। वो देव के पास आई.....
‘‘देदेदे.......ववववव! मुझे गले से लगाओ! मेरी माँग भरो! मुझसे शादी करो देव!! अगले जन्म के लिऐ‘‘ गंगा ने इच्छा जाहिर की।
‘‘अगले जन्म में भी मुझे देव ही चाहिए एक बार फिर से अपने पति रूप में!‘‘ गंगा बोली अपनी वृद्व आवाज में, धीरे-धीरे लड़खड़ाते हुए लेकिन फिर भी.. स्पष्ट स्वर में।
‘‘थैक्स गंगा!‘‘ देव ने गंगा के विचार का स्वागत किया।
दोनों ने एक बार फिर से शादी की अगले जन्म के लिए और एक दूसरे को पति-पत्नी रूप में माँग लिया एक बार फिर से। मैंने देखा...
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