उपन्यास >> गंगा और देव गंगा और देवआशीष कुमार
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आज…. प्रेम किया है हमने….
गंगा
अगला दिन।
देव कालेज पहुँचा। वो क्लास में सबसे पहले पहुँच गया था। अभी कोई अन्य स्टूडेन्ट नहीं आया था।
....तभी देव को एक कागज दिखाई दिया एक बेन्च पर।
‘‘गंगा मोदनवाल‘‘ लिखा था उस पर। जब देव ने चेक किया।
‘‘ये तो किसी लड़की का काउन्सलिंग लेटर लगता है‘‘ देव ने जाना जब पूरा कागज पढ़ा। उसने उसे अपने पास रख लिया।
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अगला दिन।
क्लास में कोई लड़की भों-भों करके रो रही थी।
‘‘अरे गायत्री! ये लड़की कौन है जो इतना हल्ला मचाये है पूरी क्लास में? देव ने पूछा।
गोल चेहरा.... बड़ी बड़ी आँखें। कान मे सोने की दो बालियाँ, क्रीम कलर का सलवार-सूट। बिल्कुल शुद्ध देशी भारतीय चेहरा। मैंने नोटिस किया....
‘‘कोई गंगा है! ....कल ये कालेज आई थी अपनी सीट कन्फर्म कराने।
यहाँ गल्ती से अपना काउन्सलिंग लेटर भूल गई। अब कालेज वाले इसे एडमिशन नहीं दे रहे हैं, इसलिए रो रही है‘‘ गायत्री बोली।
‘‘अरे! इसका लेटर तो मेरे पास है‘‘
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