उपन्यास >> गंगा और देव गंगा और देवआशीष कुमार
|
7 पाठकों को प्रिय 184 पाठक हैं |
आज…. प्रेम किया है हमने….
गायत्री
‘‘तो! ...तुमने एमबीए किया है, तो यहाँ कैसे?‘‘ गायत्री ने पूछा।
देव और गायत्री खूब बातें करते थे। धीमें-धीमें फुसफुसाकर।
‘‘माँ ने कहा कि ये कोर्स कर लूँ, तो यहीं गोशाला में उनके पास रह सकता हूँ, इसलिए इस कोर्स में एडमीशन ले लिया‘‘ देव ने गायत्री को बताया।
‘‘क्या वो तुमसे बहुत प्यार करती हैं?‘‘ गायत्री ने जानना चाहा।
‘‘हाँ! बहुत ज्यादा!‘‘ देव बोला।
‘‘देव! मैंने सुना है कि एमबीए काफी कठिन कोर्स है?‘‘
‘‘हाँ! कठिन भी और महॅगा भी। कई लाख खर्च हुये हैं इस कोर्स में!‘‘
‘‘और तुमने अपनी पढाई कहाँ से की?‘‘ देव ने पूछा।
‘‘12वीं नवोदय में। फिर ललितपुर के डिग्री कालेज से बीएससी किया‘‘ गायत्री ने बताया।
‘‘मैंने सुना है कि नवोदय में सब कुछ फ्री मिलता है?‘‘
‘‘हाँ! मुझे किताबें, खाना सब कुछ फ्री मिला। कोई फीस भी नहीं ली उन लोगो ने‘‘
.....और नवोदय का इन्र्टेस इक्जाम सिर्फ होशियार बच्चे ही पास कर पाते हैं ना? देव ने कन्फर्म करते हुये पूछा।
‘‘हाँ! काफी कठिन पेपर होता है‘‘ गायत्री ने हाँ में सिर हिलाया।
‘‘वाओ गायत्री! सो यू मस्ट बी वेरी इन्टेलीजेंट?
‘‘यस ए लिटिल‘‘ गायत्री बोली।
‘‘तुम बिल्कुल श्रीदेवी जैसे लगती हो! क्या मैनें तुम्हें अभी तक ये बात बताई?‘‘ भुलक्कड़ देव ने पूछा।
‘‘नहीं!‘‘ गायत्री मुस्कराई।
‘‘ओ नहीं!‘‘
‘‘क्या सच में? गायत्री ने अपना हाथ अपने ओठों पर रखा लिया। जैसे उसे इस बात पर विश्वास ही नहीं हो रहा था।
|