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उपन्यास >> गंगा और देव

गंगा और देव

आशीष कुमार

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :407
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9563
आईएसबीएन :9781613015872

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आज…. प्रेम किया है हमने….

हलवाई

शुक्रवार का दिन।

गोशाला। सुबह के नौ बजे।

बड़ी ही खूबसूरत... शीतल, ठण्डी, सुहावनी सुबह। बिल्कुल नीला आसमान छतरी की तरह देव के इस गोशाला की हवेली के ऊपर। इक्का-दुक्का सीनरी वाले सफेद बादल बिना पानी वाले क्षितिज पर रूई की तरह तैरते हुए। सावित्री की ये बड़ी सी दुमंजिला हवेली सूर्य देवता की सुनहरी किरणों से जगमगा उठी जैसे काँच के महल पर कोई टाँर्च से रोशनी करे और पूरा महल जगमगा उठे। मैंने देखा…

सावित्री सुबह के पाँच बजे ही उठ गयी थी। नहा-धोकर अब वो पूजा के कमरे में चली गयी थी और ‘गीता‘ का पाठ कर रही थी।

मामा के दिल की धड़कन खूबसूरत गीता मामी ने फैसला किया कि आज वो मेन डिश में लौकी के कोफते बनाऐंगी.....

‘‘देव!... ओ देव!‘‘ मामी ने देव को जोर से पुकारा मगर प्यार भरे स्वर में।

मामी की आवाज देव के कानों तक बड़ी शीघ्रता से पहुँची।

‘‘क्या है मामी?‘‘ देव बोला जोर से अपने नर्म और मुलायम बिस्तर से लेटे-लेटे।

लड़का तो बड़ा सेक्सी लग रहा है। मैंने देखा...

खूब गोरी-गोरी, सुडौल जाँघे व टाँगे हैं। देव की छाती बिल्कुल चिकनी है, एक भी बाल नहीं जैसे दर्द-ऐ-डिस्को वाले गाने में शाहरूख खान के सीने पर एक भी बाल नहीं होता जो सौदर्य बिगाड़ दे। देव अपनी जवानी के उस दौर में है जब वह अब पूर्ण रूप से वयस्क हो चुका है। मैंने गौर किया...

‘‘देखियो!.... खेत में से लौकी तोड़ ला! आज कोफते बनाती हूँ!‘‘ मामी बोली।

पर आलसी और महासुस्त देव है सोया-2, गंगा के खयालों में कहीं खोया-2। मैंने पाया....

पूरे दस मिनट तक लौकी की घनी हरी लताओं में चोर पुलिस का खेल खेलने के बाद आखिरकार देव को एक बड़ी सी मछली जैसी हरी लौकी मिल ही गयी। देव लौकी लेकर मामी के पास आया और डाइनिंग टेबल पर बैठी मामी के पास आकर बैठ गया और कद्दूकस से कसने लगा।

‘ये लड़का कभी मुफत में कोई काम नहीं करता है..... कैसे आज ये लौकी कसने का काम कर रहा है!’ मामी ने देव को तिरछी नजरो से घूरते हुए सोचा। जैसे उन्होंने देव का मन पढ़ लिआ। मैंने गौर किया...

‘‘क्या हुआ.... कुछ बात है देव? क्या तुम कुछ कहना चाहते हो? क्या कुछ पैसे चाहिए?‘‘ मामी ने अचरज भरे स्वर में पूछा....

‘‘नहीं!‘‘ देव ने धीरे से जवाब दिया।

‘‘फिर...!‘‘ मामी ने जानना चाहा कि आखिर देव आज मामी का हाथ कैसे बँटा रहा है। वो तो बड़ा कामचोर और मतलबी इन्सान है।

आखिर दिल की बात जबान पर आई....

‘‘मामी! तुम हमेशा कहती हो ना कि शादी कर लो, शादी कर लो! अब उमर हो गयी है.... तो अब हम शादी करना चाहते हैं!‘‘ देव बोला शर्माते-2 किसी लड़की की तरह धीमी आवाज में, इधर-उधर ताकते हुए। देव ने मामी से सीधे-सीधे नजरें नहीं मिलायी।

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