उपन्यास >> गंगा और देव गंगा और देवआशीष कुमार
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आज…. प्रेम किया है हमने….
देव का प्रणय निवेदन
कई दिन बीत गये। देव लगातार ये विचार मंथन करता करता रहा कि आखिर वो कैसे गंगा से अपने दिल की बात कहे? आखिर कैसे उस लड़की को बताये कि वो उससे प्यार करता है जो प्यार व्यार को अच्छा नहीं मानती। पहले से ही जो इसे गलत मानती है। जो लड़की परम्परावादी है, उसे देव कैसे बताये कि वो उससे प्यार करने लगा है। मैंने देखा ..
ये तो वही बात हो गई कि किसी को आँवले और अदरक का अचार पसन्द न हो और उसे ही ये अचार खिलाने की जिम्मेदारी सौंपी जाये। मैंने देव की मनोदशा देखकर महसूस किया...
आखिर देव ने एक युक्ति निकाली। देव एक प्रेम पत्र लिखेगा और गंगा को दे देगा।
देव ने रात भर जग कर एक प्रेम पत्र लिखा। साथ ही यह ध्यान रखा की गंगा को लेटर पढ़ कर गुस्सा न आये।
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अगला दिन।
देव ने गायत्री को सुबह-सुबह उठकर टेलीफोन कर जल्दी कालेज आने को कहा।
गायत्री जल्दी आई। देव ने गायत्री को प्रेम पत्र थमाया। गायत्री ने प्रेम पत्र पढ़ा-
हे मोहनी! हे कल्याणी! हे भवानी!
हे लक्ष्मी! हे देवी! हे दुर्गा!
हे जननीजगत नारायणी! हे गंगा!
तुमसे प्रथम दृष्टि में देखते ही मुझे तुमसे प्यार हो गया है .....प्रेम हो गया है। मैं अपना सब कुछ तुम पर हार गया हूँ। मैंने तुम्हें अपना मान लिया, मैंने तुम्हें अपना प्रियतम मान लिया है, साथ ही मैंने अपना सब कुछ तन, मन, धन.... सब तुम्हारे नाम किया। इसलिए... अब मुझे स्वीकार करो। मुझसे विवाह करो। अन्यथा मै अपने प्राण त्याग दूँगा।
- तुम्हारा देव!
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