उपन्यास >> गंगा और देव गंगा और देवआशीष कुमार
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आज…. प्रेम किया है हमने….
सर्कस
गंगा और देव का प्यार किसी लतादार पौधे की तरह बड़ी तेजी से बढ़ने लगा। मैंने जाना। तभी गोशाला में एक सर्कस लगा.....
‘‘गंगा! कभी सर्कस देखा है?‘‘ देव ने पूछा रोजाना की तरह लिखकर अपनी रफ काँपी पर। रोजाना की तरह क्लास अपनी धीमी रफ्तार से चल रही थी।
‘‘नहीं!‘‘ गंगा ने जवाब दिया लिखकर अपनी रफ काँपी पर।
‘‘गोशाला में सर्कस लगा है! देखने का मन है?‘‘ देव ने पूछा बड़े प्यार से।
‘‘हाँ! पर मेरे पास पैसे नहीं!‘‘ गंगा ने समस्या बताई।
‘‘मेरे पास हैं बहुत सारे‘‘ देव ने अपनी जेब दिखाई।
‘‘पर देव! क्लास का क्या करे?‘‘ गंगा ने दूसरी समस्या बताई।
‘‘इण्टरवल में भाग चलते है‘‘ देव ने समाधान बताया।
दोनों ने क्लास छोड़ दी। बस पकड़कर जल्दी से गोशाला पहुँचे। देव ने 20 रु वाली दो टिकटें ली जिससे गंगा शो का पूरा मजा ले सके। सर्कस में 25-30 लड़कियाँ बड़ी गोरी सफेद-2 दूध जैसी थीं। उनके बाल सुनहरे थे। वो सारी की सारी लडकियाँ रूस से आयी थीं। इसका नाम एशियन सर्कस था। मैंने जाना...
हाथी, घोड़े, शेर, भालू आदि जानवर भी अपने-अपने करतब दिखाने को तैयार थे। फिर बड़ा इन्तजार करने के बाद आखिर में शो शुरू हुआ....
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