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उपन्यास >> गंगा और देव

गंगा और देव

आशीष कुमार

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :407
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9563
आईएसबीएन :9781613015872

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आज…. प्रेम किया है हमने….


वातावरण में आया आँधी-तूफान कुछ थमा, शान्त हुआ। पहली आत्मा धीरे-धीरे प्रकट हुई। वह उड़ते हुए आई। वह चाँदी के समान बिल्कुल श्वेत रंग की थी। धीरे-धीरे वह दूधिया रोशनी में बदल गई। शायद वह किसी पुरूष की आत्मा थी। कुछ समय बाद वह इतनी तेज हो गयी है दस ट्यूबलाइट की रोशनी। सभी की आँखे जैसे चौंधिया गईं।

फिर वो हवा में तैरते हुए लेटे हुए बेहोश देव के ऊपर आकर रुकी।

देव के चेहरे पर आकर उसने जोर की फूँक मारी और अपनी ओर खींचा। बाप रे बाप! जैसे देव की जान ही खींचं ली। जैसे सारा खून ही चूस लिया। देव को ऐसा लगा कि जैसे अभी वह बिजली के खंभे पर चढ़ कर हाई वोल्टेज वाला तार छूकर आया है, जैसे एक हजार एक किलोमीटर दौड़ के आया है। बिल्कुल वही लगा देव को। जैसे उसकी जान ही खींच ली। देव का गला सूख गया और वो पसीना-पसीना हो गया।

ओह! तो तभी ये कहावत बन गई थी कि ये इश्क नहीं आसान गालिब! आग का दरिया है और डूब के जाना है

फिर वो आत्मा चली गई।

दादी ने फिर कुछ जबरदस्त टोटका किया व चमत्कारिक मन्त्र पढ़े।

फिर एक आत्मा आई जो कुछ लाल रंग की थी। शायद ये किसी स्त्री की आत्मा थी। वह भी हवा में उड़ते हुए लेटे व बेहोश पड़े देव के ऊपर आकर ठहरी। और जोर से खींचा। एक बार फिर से देव को लगा कि ये आत्माएँ देव को बचाने आई है या मारने। जीवन देने के बजाय ये तो जीवन ले लेंगी लगता है। मैंने सोचा.....

कुछ देर बाद तमाशा खत्म हुआ। सारे मछुवारों, स्त्रियाँ व उनके बच्चे अपने-अपने घरों में आराम करने चले गये।

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