उपन्यास >> गंगा और देव गंगा और देवआशीष कुमार
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आज…. प्रेम किया है हमने….
पन्द्रह दिन बाद
भाग्य और नियति
कालीचरण विश्वविद्यालय, लखनऊ
जुलाई का महीना।
बारिश की टिपटिप! बूदों की रिमझिम! आकाश में बिजली की चमचम! बदलों की धमधम! नीचे जमीन पर मोटर गाडि़यों की टमटम! और बारिश से बचकर भागने वाले लोगों की जेबों में पड़े सिक्कों की छमछम! भागती हुई औरतों के पैरों में बॅधी पायल की छनछन!
देव का दिल बड़ी जोरों से धडक रहा था। उसकी सासें अटकी हुई थी। कान्उसलिंग के कई पकाउ चरणों के बाद.....आखिर वो घड़ी आ गई थी, जब देव को अपना मनपसन्द कालेज लाँक करना था। देव ने 5 मनपसन्द कालेज लाक किये-
पहलाः नन्दिनी नगर महाविद्यालय, नवाबगंज
दूसराः सरजू डिग्री कालेज, करनैलगंज
तीसराः शान्ती देवी डिग्री कालेज, रानीगंज
चौथाः किसाग डिग्री कालेज, बहराइच
पाँचवाः शक्ति स्मारक संस्थान, बलरामपुर
‘‘देव कुमार कश्यप‘‘ चपरासी ने जोर से आवाज लगाई।
‘‘यस सर!‘‘ देव ने अन्दर काउन्सलिंग हाल में प्रवेश किया।
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