उपन्यास >> गंगा और देव गंगा और देवआशीष कुमार
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आज…. प्रेम किया है हमने….
अब तो!
अब तो! ये कहानी सुनने के बाद मैं भी सोचता हूँ कि.....
किसी से प्यार कर लूँ... प्रेम कर लूँ!
थोड़ी सी मुहब्बत कर लूँ... थोड़ी सी शरारत कर लूँ!
किसी की इबादत कर लूँ... किसी की चाहत कर लूँ!
किसी को भगवान बना लूँ... किसी की पूजा कर लूँ!
किसी से दिल लगा लूँ.... किसी को अपना बना लूँ!
अब मेरा भी मन करता है कि.....
किसी को अँखियों में बसा लूँ...
किसी से नजरे मिला लूँ!
किसी को अपना दिल दे दूँ....
किसी का दिल अपने पास रख लूँ!
किसी को इशारे कर दूँ.... किसी के इशारे समझ लूँ!
ये कर लूँ..... वो कर लूँ!
वो कर लूँ.... ये कर लूँ!
अब! ये कहानी सुनने के बाद अब तो मेरा भी मन करता है कि मैं भी शादी कर लूँ, घर बसा लूँ।
एक ईट की इमारत को जन्नत बना दूँ!
किसी को पलकों पर उठा लूँ!
किसी को अपनी बाहों में छुपा लूँ!
किसी की धड़कन सुन लूँ!
किसी की साँसे गिन लूँ
खुद को पापा बना दूँ
किसी को मम्मी बना दूँ
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