उपन्यास >> गंगा और देव गंगा और देवआशीष कुमार
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आज…. प्रेम किया है हमने….
कुछ ही दिनों मे गंगा की तेज आवाज देव का ध्यान खीचने लगीस जैसे परेशान सा करने लगी। देव कहानियाँ लिखता था इसलिए गंगा की तेज कर्कश आवाज बार-बार देव का ध्यान भंग कर देती थी। देव से रहा न गया। वो गंगा के पास पहुँचा....
‘‘एक्सक्यूस मी!‘‘ देव ने गंगा के पास जाकर उसे पुकारा।
‘‘अरे तुम! ....तुम तो वही हो ना जिसने मुझे मेरा लेटर लौटाया. था?
‘‘हाँ! देव ने हाँ में सिर हिलाया।
‘‘क्या नाम बताया था तुमने!‘‘ गंगा ने नाम याद करने की कोशिश की पर उसे नाम याद न आया।
‘‘देव! ...देव कश्यप!‘‘ देव ने खुद ही बता दिया।
‘‘देखिये! अगर एक बात कहूँ, तो क्या आप बुरा मानेंगी? देव ने गंगा से पूछा।
‘‘नहीं! बिल्कुल नहीं!‘‘ गंगा बोली।
‘‘क्लास में सब लोग कह रहे हैं कि देखो ये लड़की कितनी तेज है! ...टीचरों से भी बहस कर लेती है!‘‘ देव ने पूछा।
‘‘हाँ! मैं ऐसी ही हूँ! ...घर पर भी ऐसी ही हूँ! मुझे गलत बात बिल्कुल बर्दाश्त नहीं। अब बताओं देव जब ये लोग 75-75 हजार पहले ही जमा करवा चुके हैं, तो अब पच्चीस हजार और किस बात के माँग रहे हैं? ये तो सरासर गलत बात है ना?’ बातूनी गंगा ने पूछा।
देव ने अज्ञानता में कंधे उचकाये।
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