उपन्यास >> गंगा और देव गंगा और देवआशीष कुमार
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आज…. प्रेम किया है हमने….
मामी ने सुना।
‘‘पर फिर भी हमें अच्छी लगती है!
‘‘समझ लो कि 50-50 है!‘‘ देव इस निष्कर्ष पर पहुँचा।
‘‘नाम क्या है उसका?‘‘ मामी ने जानना चाहा।
‘‘गंगा.... गंगा मोदनवाल!‘‘ देव ने पूरा नाम बताया।
‘‘नाम तो अच्छा है!‘‘ मामी को गंगा का नाम पसन्द आया। मैंने देखा...
‘भगवान का लाख-2 शुक्र है कि गंगा के घरवालों ने हलवाई होने के बावजूद कम से कम उसका नाम तो अच्छा रखा!‘‘ देव ने राहत की साँस ली। मैंने देखा...
‘‘मामी! फिर भी हम चाहते है कि तुम माँ और डैडी के कान में ये बात डाल दो!‘‘ देव ने इच्छा जताई।
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‘भाभी! दोनों नौकरानियों ने मिलकर खाना बना दिया है! और घर के सभी चौदह कमरों में अच्छी तरह से पोछा लगा दिया है! मेहमान घर का कालीन अच्छी तरह झाड़ दिया है, मालियों ने सभी फूलों के पेड़ों की घास निकाल दी है और पानी भी दे दिया है और इन्जीनियर को बुलवाकर मैंने बगीचे का फव्वारा भी ठीक करवा दिया है!’ गीता मामी ने देव की माँ और घर की मुखिया सावित्री को घर के काम का पूरा ब्योरा दिया।
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