उपन्यास >> गंगा और देव गंगा और देवआशीष कुमार
|
7 पाठकों को प्रिय 184 पाठक हैं |
आज…. प्रेम किया है हमने….
मामी 1
‘‘देदेदे... देव!‘‘ गीता मामी ने देव को पुकारा। वो गंगा के बारे में और जानना चाहती थी। मैंने पाया...
‘‘ ...और बताओ? क्या हाल है गंगा का?‘‘ मामी ने पूछा।
‘‘ठीक है! किसी तरह उसे समझ रहा हूँ ....मनाने में लगा हूँ!
जब से उससे प्यार हुआ है..... लगता है जैसे सुप्रीम कोर्ट का कोई केस हाथ में ले लिया हो‘‘ देव सोचते-2 बोला।
‘‘अच्छा ये तो बता कि गंगा देखने में कैसी है?‘‘ मामी ने जानना चाहा। उनकी जिज्ञासा बढ़ गई थी।
‘‘गंगा की खूब बड़ी सी खोपड़ी है जैसे महिषासुर, भस्मासुर, बकासुर के परिवार से हो‘‘ देव ने दोनों हाथों के इशारे से बताया।
मामी ने सुना। वो तुरन्त चौंक पड़ी। आश्चर्य से उनकी भौंहे ऊपर की ओर दौंड़ गयी। मैंने नोटिस किया...
‘‘जब बोलती है तो चाइनीज ड्रैगन की तरह आग उगलती है! ....कभी-2 साथ में जहर भी मिला होता है‘‘ देव बोला।
मामी ने सुना। उन्हें जबरदस्त आश्चर्य हुआ ये सुनकर।
‘‘हाय! हाय! देव! ये कैसी लड़की से प्यार करता है तू!‘‘ मामी ने पूछा।
‘‘अरे मैं गंगा के बारे में पूछ रही हूँ .....जिससे तू प्यार करता है! जिससे तू शादी करना चाहता है‘‘ मामी ने जाना कि देव मजाक कर रहा है।
‘‘हाँ! हाँ! मामी! मैं गंगा के बारे में ही बता रहा हूँ!‘‘ देव ने विश्वास दिलाया।
|