उपन्यास >> गंगा और देव गंगा और देवआशीष कुमार
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आज…. प्रेम किया है हमने….
आज गंगा को पता चला कि देव को गंगा के अन्दर अपना भगवान दिखाई देता है। गंगा और देव अब दोनों ही काफी गंभीर हो गये।
इन दोनों की गंभीरता देखकर मुझे एहसास हुआ कि अब ये प्रेम कहानी हल्की-फुल्की वाली प्रेम कहानी नहीं रही। बल्कि अब इस मोड़ पर आकर सारी चीजें धीरे-धीरे गंभीर होती चली जा रही हैं। मुझे महसूस हुआ
...फिर देव बड़ी तेजी से अपनी काँपी पर कुछ लिखने लगा। और कुछ सेकेण्ड में फट्टाक से लिखकर उसने गंगा को दिखाया ...
तू ही तो जन्नत मेरी.....
तू ही मेरा जुनून!
तू ही तो मन्नत मेरी....
तू ही रूह का सुकून!
तू ही अँखियों की ठंडक!
तू ही दिल की है दस्तक!
और कुछ ना जानूं ....
बस इतना ही जानूं .....
तुझमें रब दिखता है
यारा मैं क्या करूँ? ...
सजदे सिर झुकता है
यारा मैं क्या करूँ?.....
तुझमें रब दिखता है!
यारा मैं क्या करूँ?
देव ने लिखा।
गंगा ने पढ़ा। वो बहुत खुश हो गई। उसे पता चला कि जहाँ कमजोर याददाश्त वाली गंगा देव के लिए एक लाइन भी नहीं लिख सकती है, वहीं पढ़ाई लिखाई में होशियार देव गंगा के लिए सैंकड़ो गाने लिख सकता है। अब गंगा ने जाना। मैंने भी....
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