यात्रा वृत्तांत >> घुमक्कड़ शास्त्र घुमक्कड़ शास्त्रराहुल सांकृत्यायन
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यात्रा संग्रहों के प्रणेता का यात्रा संस्मरण
स्मृतियाँ
घुमक्कड़ असंग और निर्लेप रहता है, यद्यपि मानव के प्रति उसके हृदय में अपार स्ने़ह है। यही अपार स्ने्ह उसके हृदय में अनंत प्रकार की स्मृतियाँ एकत्रित कर देता है। वह कहीं किसी से द्वेष करने के लिए नहीं जाता। ऐसे आदमी के अकारण द्वेष करने वाले भी कम ही हो सकते हैं, इसलिए उसे हर जगह से मधुर स्मृतियाँ ही जमा करने को मिलती हैं। हो सकता है, तरुणाई के गरम खून, या अनुभव-हीनता के कारण घुमक्कड़ कभी किसी के साथ अन्याय कर बैठे, इसके लिए उसे सावधान कर देना आवश्यक है। घुमक्कड़ कभी स्थायी बंधु-बांधवों को नहीं पा सकता, किंतु जो बंधु-बांधव उसे मिलते हैं, उनमें अस्थायी साकार बंधु-बांधव ही नहीं, बल्कि कितने ही स्थायी निराकार भी होते हैं, जो कि उसकी स्मृति में रहते हैं। स्मृति में रहने पर भी वह उसी तरह हर्ष-विषाद पैदा करते हैं, जैसे कि साकार बंधुजन। यदि घुमक्कड़ ने अपनी यात्रा में कहीं भी किसी के साथ बुरा किया तो वह उसकी स्मृति में बैठकर घुमक्कड़ से बदला लेता है। घुमक्कड़ कितना ही चाहता है कि अपने किए हुए अन्याय और उसके भागी को स्मृति से निकाल दे, किंतु यह उसकी शक्ति से बाहर है। जब कभी उस अत्याचार-भागी व्यक्ति और उस पर किए गये अपने अत्याचार की स्मृति आती है, तो घुमक्कड़ के हृदय में टीस लगने लगती है। इसलिए घुमक्कड़ को सदा सावधान रहने की आवश्ययकता है कि वह कभी ऐसी उत्पीड़क स्मृति को पैदा न होने दे।
घुमक्कड़ ने यदि किसी के साथ अच्छा बर्ताव, उपकार किया है, चाहे वह उसे मुँह से प्रकट करना कभी पसंद नहीं करता, किंतु उससे उसे आत्म संतोष अवश्य होता है। जिन्होंने घुमक्कड़ के ऊपर उपकार किया है, सांत्वना दी है, या अपने संग से प्रसन्न किया है, घुमक्कड़ उन्हें कभी नहीं भूल सकता। कृतज्ञता और कृतवेदिता घुमक्कड़ के स्वभाव में है। वह अपनी कृतज्ञता को वाणी और लेखनी से प्रकट करता है और हृदय मंन भी उसका अनुस्मरण करता है।
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