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घुमक्कड़ शास्त्र

राहुल सांकृत्यायन

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :265
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9565
आईएसबीएन :9781613012758

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यात्रा संग्रहों के प्रणेता का यात्रा संस्मरण



शिल्प और कला


घुमक्कड़ के स्वावलंबी होने के लिए उपयुक्त कुछ बातों को हम बतला चुके हैं। क्षौरकर्म, फोटोग्राफी या शारीरिक श्रम बहुत उपयोगी काम हैं, इसमें शक नहीं; लेकिन वह घुमक्कड़ की केवल शरीर-यात्रा में ही सहायक हो सकते हैं। उनके द्वारा वह ऊँचे तल पर नहीं उठ सकता, अथवा समाज के हर वर्ग के साथ समानता के साथ घुल-मिल नहीं सकता। सभी वर्ग के लोगों में घुल-मिल जाने तथा अपने कृतित्व को दिखाने का अवसर घुमक्कड़ को मिल सकता है, यदि उसने ललित कलाओं का अनुशीलन किया है। हाँ, यह अवश्य है कि ललित-कलाएँ केवल परिश्रम के बल पर नहीं सीखी जा सकतीं। उनके लिए स्वाभाविक रुचि का होना भी आवश्यक है। ललित-कलाओं में नृत्य, वाद्य और गान तीनों ही अधिकाधिक स्वाभाविक रुचि तथा संलग्नता को चाहते हैं। नाचने से गाना अधिक कठिन है, गाने और बजाने में कौन ज्यादा कष्ट-साध्य है, इसके बारे में कहना किसी मर्मज्ञ के लिए ही उचित हो सकता है। वस्तुत: इन तीनों में कितना परिश्रम और समय लगता है, इसके बारे में मेरा ज्ञान नहीं के बराबर है। लेकिन इनका प्रभाव जो अपरिचित देश में जाने पर देखा जाता है, उससे इनकी उपयोगिता साफ मालूम पड़ती है। यह हम आशा नहीं करते, कि जिसने घुमक्कड़ी का व्रत लिया है, जिसे कठिन-से-कठिन रास्तों से दुरूह स्थानों में जाने का शौक है, वह कोई नृत्यमंडली बनाकर दिग्विजय करने निकलेगा। वस्तुत: जैसे “सिंहों के लेंहड़े नहीं” होते, वैसे ही घुमक्कड़ भी जमात बाँध के नहीं घूमा करते। हो सकता है, कभी दो या तीन घुमक्कड़ कुछ दिनों तक एक साथ रहें, लेकिन उन्हें तो अंतत: अपनी यात्राएँ स्वयं ही पूरी करनी पड़ती हैं। हाँ, तरुणियों के लिए, जिनपर मैं आगे लिखूँगा, यह अच्छा है, यदि वह तीन-तीन की भी जमात बाँध के घूमें। उनके आत्म -विश्वास को बढ़ाने तथा पुरुषों के अत्याचार से रक्षा पाने के लिए यह अच्छा होगा।

नृत्य के बहुत से भेद हैं, मुझे तो उनमें सबका नाम भी ज्ञात नहीं है। मोटे तौर से हरेक देश का नृत्य जन-नृत्य तथा उस्तादी (क्लासिक) नृत्य दो रूपों में बँटा दिखाई पड़ता है। साधारण शारीरिक व्यायाम में मन पर बहुत दबाव रखना पड़ता है, किंतु नृत्य ऐसा व्यायाम है, जिसमें मन पर बलात्कार करने की आवश्यकता नहीं, उसे करते हुए आदमी को पता भी नहीं लगता, कि वह किसी शारीरिक परिश्रम का काम कर रहा है।

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