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यात्रा वृत्तांत >> घुमक्कड़ शास्त्र

घुमक्कड़ शास्त्र

राहुल सांकृत्यायन

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :265
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9565
आईएसबीएन :9781613012758

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यात्रा संग्रहों के प्रणेता का यात्रा संस्मरण

यात्रा में घुमक्कड़ के सामने नित्य नए दृश्य आते रहते हैं। इनके अतिरिक्त खाली घड़ियों में उसके सामने सारे अतीत के दृश्य स्मृ्ति के रूप में प्रकट होते रहते हैं। यह स्मृ‍तियाँ घुमक्कड़ को बड़ी सांत्वना देती हैं। जीवन में जिन वस्तुओं से वह वंचित रहा उनकी प्राप्ति यह मधुर स्मृतियाँ कराती हैं। लोगों को याद रखना चाहिए, कि घुमक्कड़ एक जगह न ठहर सकने पर भी अपने परिचित मित्रों को सदा अपने पास रखता है। घुमक्कड़ कभी लंदन या मास्को के एक बड़े होटल में टहरा होता है, जहाँ की दुनिया ही बिलकुल दूसरी है, किंतु वहाँ से भी उसकी स्मृतियाँ उसे तिब्बत के किसी गाँव में ले जाती हैं। उस दिन थका-माँदा बड़े डांडे को पार करके एक घुमक्कड़ सूर्यास्त के बाद उस गाँव में पहुँचा था। बड़े घर वालों ने उसे रहने की जगह नहीं दी, उन्होंने कोई-न-कोई बहाना कर दिया। अंत में वह एक अत्यंत गरीब के घर में गया। उसे घर भी नहीं कहना चाहिए, किसी पुराने खंडहर को छा-छूकर गरीब ने अपने और बच्चों के लिए वहाँ स्थान बना लिया था। गरीब हृदय खोलकर घुमक्कड़ से मिला। घुमक्कड़ रास्ते की सारी तकलीफें भूल गया। गाँव वालों का रूखा रुख चिरविस्मृत हो गया। उसने उस छोटे परिवार के जीवन और कठिनाई को देखा, साथ ही उतने विशाल हृदय को जैसा उसने उस गाँव में नहीं पाया था। घुमक्कड़ के पास जो कुछ भी देने लायक था, चलते वक्त उसे उसने उस परिवार को दे दिया, किंतु वह समझता था कि सिर्फ इतने से वह पूरी तौर से कृतज्ञता प्रकट नहीं कर सकता।

घुमक्कड़ के जीवन में ऐसी बहुत-सी स्मृतियाँ होती हैं। जो कटु स्मृतियाँ यदि घर करके बैठी होती हैं, उनमें अपने किए हुए अन्याय की स्मृति दुस्सह हो उठती है। कृतज्ञता और कृतवेदिता घुमक्कड़ का गुण है। वह जानता है कि हर रोज कितने लोग अकारण ही उसकी सहायता के लिए तैयार हैं और वह उनके लिए कुछ भी नहीं कर सकता। उसे एक बार का परिचित दूसरी बार शायद ही मिलता है, घुमक्कड़ इच्छा रहने पर भी वहाँ दूसरी बार जा ही नहीं पाता। जाता भी है तो उस समय तक बारह साल का एक युग बीत गया रहता है। उस समय अक्सर अधिकांश परिचित चेहरे दिखलाई नहीं पड़ते, जिन्होंने उसके साथ मीठी-मीठी बातें की थीं, हर तरह की सहायता की थी। बारह वर्ष के बाद वाणी से भी कृतज्ञता प्रकट करने का उसे अवसर नहीं मिलता। इसके लिए घुमक्कड़ के हृदय में मीठी टीस लगती है - उस पुरुष की स्मृति में मिठास अधिक होती है उसके वियोग में टीस।

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