लोगों की राय

यात्रा वृत्तांत >> घुमक्कड़ शास्त्र

घुमक्कड़ शास्त्र

राहुल सांकृत्यायन

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :265
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9565
आईएसबीएन :9781613012758

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

322 पाठक हैं

यात्रा संग्रहों के प्रणेता का यात्रा संस्मरण

जो भी हो, अपने घुमक्कड़ रहने पर भी संस्थाओं के लिए जो भी वस्तुएँ संग्रहीत हो सकें, उनका संग्रह करना चाहिए। ऐसी ही किसी संस्थान में वह अपनी साल साल की डायरी भी रख सकता है। व्यक्ति के ऊपर भरोसा नहीं करना चाहिए। व्यक्ति का क्या ठिकाना है? न जाने कब चल बसे, फिर उसके बाद उत्तराधिकारी इन वस्तुओं का क्या मूल्य् समझेंगे! बहुत-सी अनमोल निधियों के साथ उत्तराधिकारियों का अत्याचार अविदित नहीं है। उस दिन ट्रेन दस घंटा के बाद मिलने वाली थी, इसलिए कटनी में डाक्टर हीरालाल जी का घर देखने चले गये। भारतीय इतिहास, पुरातत्व, के महान गवेषक और परम अनुरागी हीरालाल अपने जीवन में कितनी ही ऐतिहासिक सामग्रियाँ जमा करते रहे। अब भी उनकी जमा की हुई कितनी ही मूर्तियाँ सीमेंट के दरवाजे में मढ़ी लगी थी। उनके निजी पुस्तकालय में बहुत-से महत्वपूर्ण और कितने ही दुर्लभ ग्रंथ हैं। डाक्टर हीरालाल के भतीजे अपने कीर्तिशाली चचा की चीजों का महत्व समझते हैं, अत: चाहते थे कि उन्हें कहीं ऐसी जगह रख दिया जाय, जहाँ वह सुरक्षित रह सकें। उनको कटनी ही की किसी संस्था में रख छोड़ने का मोह था। मैंने कहा - आप इन्हें सागर विश्वविद्यालय को दे दें। वहाँ इन वस्तुओं से पूरा लाभ उठाया जा सकता है, और चिरस्थायी तथा सुरक्षित भी रखा जा सकता है। उन्होंने इस सलाह को पसंद किया। मेरे मित्र डाक्टर जायसवाल अधिक अग्रसोची थे। उन्होंने कानून की पुस्तकें छोड़ अपने सारे पुस्तकालय को हिंदू विश्वविद्यालय के नाम पहले ही लिख दिया था।

घुमक्कड़ का अपना घर न रहने के कारण इसकी चिंता नहीं करनी चाहिए, कि अपने पास धीरे-धीरे बड़ा पुस्तकालय या संग्रहालय जमा हो जायगा। जो भी महत्व पूर्ण चीज हाथ लगे, उसे सुपात्र संस्था में देते रहना चाहिए। सुपात्र संस्था के लिए आवश्यक नहीं है कि वह घुमक्कड़ की अपनी ही जन्मभूमि की हो। वह जिस देश में भी घूम रहा है, वहाँ की संस्था को भी दे सकता है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

लोगों की राय

No reviews for this book