यात्रा वृत्तांत >> घुमक्कड़ शास्त्र घुमक्कड़ शास्त्रराहुल सांकृत्यायन
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यात्रा संग्रहों के प्रणेता का यात्रा संस्मरण
तुम अपने हृदय की दुर्बलता को छोड़ो, फिर दुनिया को विजय कर सकते हो, उसके किसी भी भाग में जा सकते हो, बिना पैसा-कौड़ी के जा सकते हो, केवल साहस की आवश्यहकता है, बाहर निकलने की आवश्यकता है और वीर की तरह मृत्यु पर हँसने की आवश्यकता है। मृत्यु ही आ गई तो कौन बड़ी बात हो गई? वह कहीं भी आ सकती थी। मनुष्य को कभी-कभी कष्ट का भी सामना करना पड़ता है, लेकिन जो सिंह का शिकार करने चला है, अगर वह डरता रहे, तो उसे आगे बढ़ने का क्या आवश्यकता थी? यदि भावी घुमक्कड़ आयु में और अनुभव में भी कम हैं, तो वह पहले छोटी-छोटी उड़ान कर सकता है। नए पंख वाले बच्चे छोटी ही उड़ान करते हैं।
आरंभिक उड़ानों में, मैं नहीं कहूँगा, कि यदि कुछ पैसा घर से मिल सकता हो, तो वैराग्य के मद में चूर हो काक-विष्टा समझकर छोड़ कर चल दें। गाँठ का पैसा अपना महत्व रखता है, इसीलिए वह किसी तरह अगर घर में से मिल जाय, तो कुछ ले लेने में हरज नहीं है। पिता-माता का सौ-पचास ले लेना किसी धर्मशास्त्र में चोरी नहीं कही जायेगी, और होशियार तरुण कितनी ही सावधानी से रखे पैसे में से कुछ प्राप्त कर ही लेते हैं। आखिर जो सारी संपत्ति से त्याग-पत्र दे रहा है उसके लिए उसमें से थोड़ा-सा ले लेना कौन से अपराध की बात है? लेकिन यह समझ लेना चाहिए,कि घर के पैसे के बल पर प्रथम या दूसरी श्रेणी का घुमक्कड़ नहीं बना जा सकता। घुमक्कड़ को जेब पर नहीं, अपनी बुद्धि, बाहु और साहस का भरोसा रखना चाहिए। घर का पैसा कितने दिनों तक चलेगा? अंत में तो फिर अपनी बुद्धि और बल पर भरोसा रखना होगा।
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