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यात्रा वृत्तांत >> घुमक्कड़ शास्त्र

घुमक्कड़ शास्त्र

राहुल सांकृत्यायन

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :265
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9565
आईएसबीएन :9781613012758

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यात्रा संग्रहों के प्रणेता का यात्रा संस्मरण

घर छोड़ने के लिए कम-से-कम आयु 16-18 है, अधिक से अधिक आयु मैं 23-24 मानता हूँ। 24 तक घर से निकल जाना चाहिए, नहीं तो आदमी पर बहुत-से कुसंस्कार पड़ने लगते हैं, उसकी बुद्धि मलिन होने लगती है, मन संकीर्ण पड़ने लगता है, शरीर को परिश्रमी बनाने का मौका हाथ से निकलने लगता है, भाषाएँ सीखने में सबसे उपयोगी आयु के कितने ही बहुमूल्य वर्ष हाथ से चले जाते हैं। इस तरह 16 से 24 साल की आयु वह आयु है जब कि महाभिनिष्क्रमण करना चाहिए। इनमें दोनों के बीच के बीच के आठ वर्ष की आधी अर्थात् 20 वर्ष की आयु को आदर्श माना जा सकता है। इसका अर्थ यह है कि अल्पतम अवसर के बाद भी आदमी चार वर्ष और अपने पर जोर डालकर अपनी शिक्षा में लगा रहे। याद रखना चाहिए, प्रथम श्रेणी का घुमक्कड़ कवि, लेखक या कलाकार के रूप में संसार के सामने आना है। कवि, लेखक और कलाकार यदि ज्ञान में टुटपुंजिये हों, तो उनकी कृतियों में गम्भीरता नहीं आ सकती। अल्पश्रुति व्यक्ति देखी जानेवाली चीजों की गहराई में नहीं उतर सकते। पहले दृढ़ संकल्प कर लेने पर फिर आगे की पढ़ाई जारी रखते आदमी को यह भी पता लगाना चाहिए, कि उसकी स्वाभाविक रुचि किस तरफ अधिक है, फिर उसी के अनुकूल पाठ्य-विषय चुनना चाहिए। मैट्रिक की शिक्षा मैंने कम-से-कम बतलाई और अब उसमें चार साल और जोड़ रहा हूँ, इससे पाठक समझ गये होंगे कि मैं उन्हें  विश्व विद्यालय का स्नातक (बी.ए.) हो जाने का परामर्श दे रहा हूँ। यह अनुमान गलत नहीं है। मेरे पाठक फिर मुझसे नाराज हुए बिना नहीं रहेंगे। वह धीरज खोने लगेंगे। लेकिन उनके इस क्षणिक रोष से मैं सच्ची और उनके हित की बात बताने से बाज नहीं था सकता। जिस व्यक्ति में महान घुमक्कड़ का अंकुर है, उसे चाहे कुछ साल भटकना ही पड़े, किंतु किसी आयु में भी निकलकर वह रास्ता बना लेगा। इसलिए मैं अधीर तरुणों के रास्ते में रुकावट डालना नहीं चाहता। लेकिन 40 साल की घुमकक्ड़ी के तजुर्बे ने मुझे बतलाया है, कि तैयारी के समय को थोड़ा पहले ही बढ़ा दिया जाय, तो आदमी आगे बड़े लाभ में रहता है। मैंने पुस्तकें लिखते वक्त सदा अपनी भोगी कठिनाइयों का स्मरण रखा। मुझे 1916 से 1932 तक के सोलह वर्ष लगाकर जितना बौद्ध धर्म का ज्ञान मिला, मैंने एक दर्जन ग्रंथों को लिखकर ऐसा रास्ता बना दिया है, कि दूसरे सोलह वर्षों में प्राप्त ज्ञान को तीन-चार वर्ष में अर्जित कर सकते हैं। यदि यह रास्ता पहले तैयार रहता, तो मुझे कितना लाभ हुआ होता? जैसे यहाँ यह विद्या की बात है, वैसे ही घुमकक्ड़ी के साधनों के संग्रह में बिना तजुर्बे वाले आदमी के बहुत-से वर्ष लग जाते हैं। आपने 12-14 वर्ष की आयु में दृढ़ संकल्प कर लिया, सोलह वर्ष का आयु में मैट्रिक तक पढ़कर आवश्यक साधारण विषयों का ज्ञान प्राप्त कर लिया है। आप दुनिया के नक्शे से वाकिफ हैं, भूगोल का ज्ञान रखते हैं, दुनिया के देशों से बिलकुल अपरिचित नहीं हैं।

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