यात्रा वृत्तांत >> घुमक्कड़ शास्त्र घुमक्कड़ शास्त्रराहुल सांकृत्यायन
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यात्रा संग्रहों के प्रणेता का यात्रा संस्मरण
अगले चार वर्षों तक यदि तरुण ठहरकर, शिक्षा में और लगता है तो वह अपने ज्ञान और शारीरिक योग्यता को आगे बढ़ा सकता है। जहाँ एक ओर उसको यह लाभ हो सकता है, वहाँ उसे दूसरा लाभ है विश्वचविद्यालय का स्नातक बन जाना। घुमक्कड़ के लिए बी.ए. हो जाना कोई अत्यंत आवश्यक चीज नहीं है। उसका भाव होने पर यद्यपि बहुत अंतर नहीं पड़ता, लेकिन अभाव होने पर कभी-कभी घुमक्कड़ आगे चलकर इसे एक कमी समझता है और फिर विविध देशों में पर्यटन करते रहने की जगह वह बी.ए. की डिग्री लेने के लिए बैठना चाहता है। इस एषणा को पहले ही समाप्त करके यदि वह निकलता है, तो आगे फिर रुकना नहीं पड़ता। डिग्री का कहीं-कहीं लाभ भी हो सकता है। इसका एक लाभ यह भी है कि पहले-पहले मिलने वाले आदमी को यह तो विश्वास हो जाता है कि यह आदमी शिक्षित और संस्कृत है। जो तरुण कालेज में चार साल लगाएगा, वहाँ अपने भावी कार्य और रुचि के अनुसार ही विषयों को चुनेगा। फिर पाठ्य पुस्तकों से बाहर भी उसे अपने ज्ञान बढ़ाने का काफी साधन मिल जायगा। इसी समय के भीतर आदमी नृत्य, संगीत, चित्र आदि घुमक्कड़ के लिए अत्यंत उपयोगी कलाएँ भी सीख जायगा। इस प्रकार चार साल और रुक जाना घाटे का सौदा नहीं है। बीस या बाईस साल की आयु में यूनिवर्सिटी की उच्च शिक्षा को समाप्त करके आदमी खूब साधन-संपन्न हो जायगा, इसे समझाने की आवश्यिकता नहीं। संक्षेप में हमें इस अध्याय में बतलाना था - वैसे तो होश सँभालने के बाद किसी समय आदमी संकल्प पक्का कर सकता है, और घर से भाग भी सकता है, आगे उसका ज्ञान और साहस सहायता करेगा, लेकिन बारह वर्ष की अवस्था में दृढ़ संकल्प करके सोलह वर्ष की अवस्था तक बाहर जाने के लिए उपयोगी ज्ञान के अर्जन कर लेने पर भागना कोई बुरा नहीं है। लेकिन आदर्श महाभिनिष्क्रमण तो तभी कहा जा सकता है, जबकि घुमक्कड़ी के सभी आवश्यक विषयों की शिक्षा हो चुकी हो, और शरीर भी हर तरह के काम के लिए तैयार हो। 22 या 24 साल की उम्र में घर छोड़ने वाला व्यक्ति इस प्रकार ज्ञान-संपत्ति और शारीरिक-श्रम-संपत्ति दोनों से युक्त होगा। अब उसे कहीं निराशा और चिंता नहीं होगी।
आर्थिक कठिनाइयों के कारण घर पर रहकर जिनको अध्ययन में कोई प्रगति होने की संभावना नहीं है, उनके लिए तो -
यदहरेव विरजेत तदहरेव प्रब्रजेत्
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