लोगों की राय

यात्रा वृत्तांत >> घुमक्कड़ शास्त्र

घुमक्कड़ शास्त्र

राहुल सांकृत्यायन

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :265
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9565
आईएसबीएन :9781613012758

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

322 पाठक हैं

यात्रा संग्रहों के प्रणेता का यात्रा संस्मरण

1926 में मैं इस जीवन पर मुग्ध हुआ, अभी तक उसकी प्राप्ति में सफल न होने पर भी आज भी वह आकर्षण कम नहीं हुआ। एक घुमक्कड़ी इच्छुक तरुण को एक मरतबे मैंने प्रोत्साहित किया था। वह विलायत जा बैरिस्टर हो आए थे और मेरे आकर्षक वर्णन को सुनकर उस वक्त ऐसे तैयार जान पड़े, गोया तिब्बत का ही रास्ता लेने वाले हैं। ये तिब्बती घुमक्कड़ अपने को खंपा या ग्यपग-खंपा कहते हैं। इन्हें आर्थिक तौर से हम भारतीय सिरकीवालों से नहीं मिला सकते। पिछले साल एक खंपा तरुण से घुमंतू जीवन के बारे में बात हो रही थी। मैं भीतर से हसरत करते हुए भी बाहर से इस तरह के जीवन के कष्ट के बारे में कह रहा था। खंपा तरुण ने कहा - “हाँ, जीवन तो अवश्य सुखकर नहीं है, किंतु जो लोग घर बाँधकर गाँव में बस गये हैं, उनका जीवन भी अधिक आकर्षक नहीं मालूम होता। आकर्षण क्या, अपने को तो कष्ट मालूम होता है। शिमला पहाड़ में कौन किसान है, जो चाय, चीनी, मक्खन और सुस्वाद अन्न खाता हो? मानसरोवर में कौन मेषपाल है, जो सिगरेट पीता हो, लेमन-चूस खाता हो? हम कभी ऐसे स्थानों में रहते हैं, जहाँ मांस और मक्खन रोज खा सकते हैं, फिर शिमला या दिल्ली के इलाके में पहुँचकर भी वहाँ के किसानों से अच्छा खाते हैं।

बात स्पष्ट थी। वह खंपा तरुण अपने जीवन को किसी सुखपूर्ण अचल जीवन से बदलने के लिए तैयार नहीं था। यह उसके पैरों में था कि जब चाहे तब शिमला से चीन पहुँच जाय। रास्ते में कितने विचित्र-विचित्र पहाड़, पहले जंगलों से आच्छादित तुंग शैल, फिर उत्तुंग हिमशिखर, तब चौड़े ऊँचे मैदान वाली वृक्ष-वनस्पति-शून्य तिब्बत की भूमि में कई सौ मील फैला ब्रह्मपुत्र का कछार! इस तरह भूमि नापते चीन में पहुँचना! घुमक्कड़ी में दूसरे सुभीते हो सकते हैं, दिल मिल जाने पर उनके साथ दृढ़ बंधुता स्थापित हो सकती है; किंतु ये तिब्बत के ही घुमक्कड़ हैं, जो पूरी तौर से दूसरे घुमक्कड़ को अपने परिवार का व्यक्ति बना, सगा भाई स्वीकार कर सकते हैं - सगा भाई वही तो है, जिसके साथ सम्मिलित विवाह हो सके।

हमने नमूने के तौर पर सिर्फ तीन देशों की घुमक्कड़ जातियों का जीवन वर्णित किया। दुनिया के और देशों में ऐसी कितनी ही जातियाँ हैं। इन घुमक्कड़ों के घूमते परिवार के साथ साल-दो-साल बिता देना घाटे का सौदा नहीं है। उनके जीवन को दूर से देखकर पुश्किन ने कविता लिखी थी। फिर उनमें रहने वाला और भी अच्छी कविता लिख सकता है, यदि उसको रस आ जाय। भिन्न-भिन्न देशों में घुमंतुओं पर कितने ही लेखकों ने कलम चलाई है, लेकिन अब भी नए लेखक के लिए वहाँ बहुत सामग्री है। चित्रकार उनमें जा अपनी तूलिका को धन्य कर सकता है। जो घुमक्कड़ उनके भीतर रमना चाहते हैं, कुछ समय के लिए अपनी जीवन-धारा को उनसे मिलाना चाहते हैं, उन्हें ऐसा करने पर अफसोस नहीं होगा। घुमक्कड़ जाति के सहयात्री को जानना चाहिए कि उनमें सभी पिछड़े हुए नहीं हैं। कितनों की समझ और संस्कृति का तल ऊँचा है, चाहे शिक्षा का उन्हें अवसर न मिला हो। घुमक्कड़ उनमें जाकर अपनी लेखनी या तूलिका को सार्थक कर सकता है, उनकी भाषा का अनुसंधान कर सकता है।

भारत के सिरकीवालों पर वस्तुत: इस दिशा में कोई काम नहीं हुआ है। जो भाषा, साहित्य और वंश की दृष्टि से उनका अध्ययन करना चाहते हैं, उनके लिए आवश्यक होगा कि इन विषयों का पहिले से थोड़ा परिचय कर लें। अंग्रेजों ने एक तरह इस कार्य को अछूता छोड़ा है। यह मैदान तरुण घुमक्कड़ों के लिए खाली पड़ा हुआ है। उन्हें अपने साहस, ज्ञान-प्रेम और स्वच्छंद जीवन को इधर लगाना चाहिये।


0 0 0

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

लोगों की राय

No reviews for this book