यात्रा वृत्तांत >> घुमक्कड़ शास्त्र घुमक्कड़ शास्त्रराहुल सांकृत्यायन
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यात्रा संग्रहों के प्रणेता का यात्रा संस्मरण
चिलम इसी तरह घूमती रही, उधर देश-देशांतर की बातें भी होती रहीं। किसी ने किसी नवीन स्थान की बातें सुनकर वहाँ जाने का संकल्प किया; किसी ने अपने देखे हुए स्थानों की बातें कहकर दूसरे का समर्थन किया। भोजन चाहे सूखी रोटी और नमक का ही हो, लेकिन वह कितना मधुर रहा होगा, इसका अनुमान एक घुमक्कड़ ही कर सकता है। बड़ी रात तक इसी तरह घुमक्कड़ों का सत्संग चलता रहा। वेदांत, वैराग्य का वहाँ कोई नाम नहीं लेता था, न हरिकीर्तन की कोई पूछ थी (अभी हरिकीर्तन की बीमारी बहुत बढ़ी नहीं थी)। घुमक्कड़ जानते हैं, यह दुनिया ठगने की चीज है। प्रथम श्रेणी के घुमक्कड़ इस तरह की प्रवंचना से अलग रहना चाहते हैं।
हाँ, तो धर्मों की संकीर्ण सीमाओं को घुमक्कड़ पार कर जाता है, उसके लिए यह भेदभाव तुच्छ-सी चीज हैं, तभी तो वहाँ इमली के नीचे मुसलमान घुमक्कड़ ने दो काफिर घुमक्कड़ों का स्वागत किया और तुंगभद्रा के तट पर पाँचों मूर्तियों ने संन्यासी, वैरागी का कोई ख्याल नहीं रखा। लेकिन घुमक्कड़ की उदारता के रहते हुए भी धर्मों की सीमाएँ हैं, जिनके कारण घुमक्कड़ और ऊपर नहीं उठने पाता। यदि यह नहीं होता तो तरुण घुमक्कड़ को इमली के नीचे रात बिताने में उज्र नहीं होना चाहिए था। आखिर वहाँ धूनी रमाये शाहसाहब दो टिक्कर पैदा कर सकते थे, जिसमें एक तरुण को भी मिल जाता। यहाँ आवश्यकता थी कि घुमक्कड़ सारे बंधनों को तोड़ फेंकता। वहाँ तक पहुँचने में इन पंक्तियों के लेखक को पंद्रह-सोलह वर्ष और लगे और उसमें सफलता मिली बुद्ध की कृपा से, जिसने हृदय की ग्रंथियों को भिन्न कर दिया, सारी समस्याओं को छिन्न कर दिया।
ईसाई घुमक्कड़ ब्राह्मण-धर्मी घुमक्कड़ से इस बात में अधिक उदार हो सकता है; मुसलमान फकीर भी घुमक्कड़ी के नशे में चूर होने पर किसी तरह के भेदभाव को नहीं पूछता। लेकिन, सबसे हीरा धर्म घुमक्कड़ के लिए हो सकता है, वह है बौद्ध धर्म, जिसमें न छुआछूत की गुंजाइश है, न जात-पाँत की। वहाँ मंगोल चेहरा और भारतीय चेहरा, एसियाई रंग और यूरोपीय रंग, कोई भेदभाव उपस्थित नहीं कर सकते।
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