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घुमक्कड़ शास्त्र

राहुल सांकृत्यायन

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :265
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9565
आईएसबीएन :9781613012758

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यात्रा संग्रहों के प्रणेता का यात्रा संस्मरण

लेखनी का कोमल पदावली से अन्यत्र भी भारी उपयोग हो सकता है है। हमारे क्या दूसरे देशों के भी प्राचीन साहित्य में गद्य को वह महत्व पूर्ण स्थान नहीं प्राप्त था, जो आज उसे प्राप्त हुआ है। उच्च श्रेणी के घुमक्कड़ के लिए लेखनी का धनी होना बहुत जरूरी है। बँधी हुई लेखनी को खोलने का काम यदि घुमक्कड़ी नहीं कर सकता, तो कोई दूसरा नहीं कर सकता। घुमक्कड़ देश-विदेश में घूमता हुआ चित्र-विचित्र दृश्यों को देखता है, भिन्न-भिन्न रूप-रंग तथा आचार विचार के लोगों के संपर्क में आता है। जिन दृश्यों को देखकर उसके हृदय में कौतूहल, आकर्षण और तृप्ति पैदा होती है, उसके लिए स्वाभाविक है कि उनके बारे में दूसरों से कहे। इसके लिए घुमक्कड़ का हाथ स्वत: लेखनी को उठा लेता है, लेखनी मानो स्वयं चलने लगती है। उसे मानसिक कल्पना द्वारा नई सृष्टि की आवश्यकता नहीं। दृश्यों, व्यक्तियों और घटनाओं को जैसे ही देखता है, वैसे ही वह हृदयस्थ होने लगती हैं, और फिर लेखनी अपने आप उन्हें वर्णों में अंकित करने लगती है। घुमक्कड़ को अपनी यात्रा किस रूप में लिखनी चाहिए, इसके लिए नियम निर्धारित नहीं किया जा सकता। उसे वास्तविकता को सामने रखते हुए जिस शैली में इच्छा हो, लिपिबद्ध कर देना चाहिए। आरंभ में अभी-अभी लिखने का प्रयास करने वाले के लिए यह भी अच्छा होगा, यदि वह अपने किसी देश-बंधु को पत्ररूप में आँखों के सामने आते दृश्यों को अंकित करे। लेखक की प्रतिभा के उद्जागरण के लिए पत्र आरंभ में बड़े सहायक होते हैं। कितने ही-भावी लेखकों को उनके पत्रों द्वारा पकड़ा जा सकता है। पत्र दो व्यक्तियों के आपसी साक्षात् संबंध की पृष्ठभूमि में एक दूसरे के लिए आकर्षक या आवश्यक बातों को लेकर लिखे जाते हैं। यदि लेखक में प्रतिभा है, तो उसका चमत्कार लेखनी से जरूर उतरेगा। लेकिन, यह कोई आवश्यक नहीं है, कि यात्रा-संबंधी लेख पत्रों के रूप में आरंभ किए जायँ। घुमक्कड़ आरंभ से ही यात्रा विवरण के रूप में लेखनी चला सकता है। लिखने के ढंग के बारे में चिंता करने की आवश्यकता नहीं। अच्छे लेखक भी अपने पहले के लेखकों से प्रभावित जरूर होते हैं, किंतु बिना ही प्रयास उनकी अपनी निजी शैली भी बन जाती है।

यात्रावर्णन स्वयं एक उच्च साहित्य का रूप ले सकता है, यह कितने ही लेखकों के वर्णन के समझ में आ सकता है। जो सतत घुमक्कड़ है, और नए-नए देशों में घूमता रहता है, उसके लिए तो यात्राएँ ही इतनी सामग्री दे सकती हैं, जिस पर लिखने के लिए सारा जीवन पर्याप्त नहीं हो सकता। लेकिन यात्राओं के लेखक दूसरी वस्तुओं के लिखने में भी कृतकार्य हो सकते हैं। यात्रा में तो कहानियाँ बीच में ऐसे ही आती रहती हैं, जिनके स्वाभाविक वर्णन से घुमक्कड़ कहानी लिखने की कला और शैली को हस्तगत कर सकता है। यात्रा में चाहे प्रथम पुरुष में लिखें या अन्य पुरुष में, घुमक्कड़ तो उसमें शामिल ही है, इसलिए घुमक्कड़ उपन्यास की ओर भी बढ़ने की अपनी क्षमता को पहचान सकता है, और पहले के लेखक का अभ्यास इसमें सहायक हो सकता है।

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